Friday 24 May 2013

संघर्ष के सिपाही -निस्वार्थी कार्यकर्ता

कोई भी आन्दोलन न किसी एक इंसान से बनता है,और न बिगड़ता है ! आन्दोलन को कमज़ोर करने वाली बहुत सी कड़ियाँ थी , जिन्हें अगले ब्लॉग  में जगह मिलेगी ! पर इसे मजबूत करने वाले कई हाथ हैं ,जो वाकई हमारे सम्मान के हक़दार हैं !
इस आन्दोलन ने कई जिंदगियां बदल दी !  "ये आन्दोलन जिन कन्धों पर चढ़कर आगे बढ़ा वो कंधे थे उन हज़ारों "कार्यकर्ताओं" के ,जिन्होंने न दिन देखा न रात , न आंधी न बरसात , बस एक ऐसी धुन में इस युद्ध में कूद पड़े ! सब के सर पर एक जुनून सवार था, कुछ कर गुज़रने का , कुछ बदलने का !
जब अप्रैल में इस लड़ाई का बिगुल बजा,कोई  अन्ना को या अरविन्द  को नही जानता था ! अब वाली बात नही थी, कि अरविन्द के मन में सोचने भर से कोई जान दे दे ! सब आपस में अजनबी थे ! बस इतना जानते थे , कि हम भारतीय हैं ! देश का कुछ क़र्ज़ है जो जी कर या मर कर उतार के जायेंगे !अप्रैल में अन्ना के अनशन के दौरान ,उमस भरे माहौल में , अव्यवस्थित भीड़ को एक आंदोलन में बदलने का जिम्मा इन्ही वीरों ने उठाया था ! गर्मी में सूखते  हलक  की प्यास बुझाना   ,   हवा में पार्ले बिस्किट उछालना , पसीने सुखाने के लिए पंखों की जगह अखबार ढूंढ कर देना और बीच बीच में सुस्त पड़ती भीड़ , में जोश भरने का काम यही सिपाही लड़ाके करते थे !
इस आन्दोलन में कोई पैसों के लिए या दिखावे के  लिए नही आया था , किसी को कोई ओहदा या कोई सुविधा नही मिल रही थी ! अन्ना की रसोई नाम की जगह पर जनता के बाद सबसे अंत में बचा कुचा थोडा बहुत खाना इन कार्यकर्ताओं को मिलता था ! पर फिर भी किसी की जुबां पर शिकायत नही थी ! सब पानी पी कर भी खुश रहते थे ! सड़क पर सो जाते ! वहीँ उठते ! नीम का दातुन तोड़ते , और दांत घिस लेते ! गुरुद्वारे में नहा लेते ! खालिस खानाबदोश जिंदगी ! घर बदल गए ! ठिकाने बदल गए ! आलम ऐसा हुआ कि घर भी तब जाते थे,जब लगता था की अगर नही गए तो शाद  माँ बाप बच्चों की  सूरत भी भूल जाएँ !
ये कार्यकर्ता आये कहाँ से थे ? क्या आसमान से उतरे थे ? अब तक कहाँ थे? ये क्यों अपना सब कुछ दाव पार लगाने पर तुले थे ? इन्हें क्या फायदा था ? ये सवाल हर किसी के मन में उठते थे ! इतना सेवा भाव और इतना जूनून आखिर आया कहाँ से ?
दरअसल सब यही था ! हमारे भीतर ! इस आन्दोलन में सिर्फ खाली बैठे या चप्पल घिसते लोग नही आये थे बल्कि, कोई कोई इनफ़ोसिस से आया,कोई एच सी एल , कोई मल्टीनेशनल कंपनी से कोई डॉक्टर ,कोई इंजीनियर ,कोई आई टी कम्पनी का मालिक , कोई व्यापारी ! सब हज़ारों - लाखों की कमाई छोड़ कर निकले थे ! किसी ने बच्चों का बचपन खो दिया, कोई माँ बाप को अकेला कर के आया , किसी ने विदेश जान के सपने को तिलांजली  दे दी , तो कोई घर बसाने के अरमान को हमेशा के लिए दफन करके आया !
रामलीला मैदान में भीड़ का हुजूम देखते ही बनता था ! भारत में सब मुमकिन है,पर अनुशासन नाम की चिड़िया किसी डाल पर नही बैठती ! जहाँ फ़र्ज़ बनता था कि सब मिलकर अपनी फैलाई गंदगी उठा दे, वहीँ  लोग आते और बस गंद ज्यू की त्यु छोड़ कर चल देते ! नगर पालिका वाले वैसे ही दुश्मन से थे , तो  शौचालय की हालत नरक से बदतर कर रखी थी ! इस गंदगी को ठिकाने लगाकर आन्दोलन को रहने  लायक बनाने वाले विजय बाबा को शायद आन्दोलन से जुडा हर शख्स जानता है ! विजय बाबा रिक्शा चलाते हैं ! पर आन्दोलन के वक़्त लोगों की मचाई गंद को ये साफ़ करते हे ! बिजली पानी आंदोलन में भी इन्होने रिक्शा चलाते हुए साथ साथ आन्दोलन का भी काम किया !
फिरोजाबाद के खेत्रपाल जी ! ये  पैरों से विकलांग ,पर आन्दोलन में इनकी भूमिका जबरदस्त है ! बिजली पानी सत्याग्राह  में इनका योगदान अद्वितीय रहा ! ये हामारी अपाहिज सरकार से ज्यादा सक्षम हैं !
आगरा में  विष्णु जी ! उनके पैर नहीं है पर अन्ना आन्दोलन और अरविन्द के अनशन के दोरान वो इन्सान ट्राईसाईकिल से रोज २० किलोमीटर जेक पर्चे बाटते थे और आज भी लगातार दिन रात आन्दोलन में काम करते है ! जहाँ आज दो पैर वाले देश की इस हालत से संतुष्ट हैं, वहां विष्णु  शारीरिक रूप से इश्वर का भेदभाव सहने के बाद भी अपने हिस्से का हर संभव प्रयास कर रहे हैं !
एक कार्यकर्ता जो , अच्छी नौकरी पर काम कर रही थी ! आन्दोलन सर पर सवार हुआ , सब छोड़ छाड़ कर आ गयी ! परिवार को नागवार गुज़रा ! दंगे हुए ! अब न घर से कोई  मदद लेती है, न  घर जाती है ! कोई एम सी ए कर रहा था , अब पता नही कि फॉर्म कौन से साल  में भरा था ! कोई घर नही गया 6 महीने से ,क्यूंकि डर था कि कहीं घर वाले वहीँ न रोक लें !
आन्दोलन से पहले, लोगों में उसकी अलख जगाने के लिए नुक्कड़ नाटक हुआ करते थे ! चिलचिलाती धूप और  मई जून के महीने में रेलवे स्टेशन , गली मोहल्ले , बाज़ार , ऐसी जगहों पर कुछ युवा लोगों का एक समूह लाल कुरते पहने ,हाथ में डपली लिए देश भक्ति गाने और आन्दोलन की कहानी गीतों की भाषा में सुनाता था ! तपती धरती में  घुटने के बल बैठ कर , घंटों जगह जगह जागरूकता फैलाने वाले ये कार्यकर्त्ता दिन रात महीनो तक यूँ ही लगे रहते !
ये सिर्फ दिल्ली की बात नही हो रही ! हर राज्य,जिले कसबे  में आन्दोलन की सांस यह कार्यकर्ता रहे ! कोयला घोटाले  में नेताओं के घर का घेराव ,बैसाखी चोर के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन ,दामिनी  बलात्कार के खिलाफ आन्दोलन, बिजली के दामों के खिलाफ आन्दोलन यहाँ, तक की  बिजली पानी सत्याग्रह में 10 लाख से ऊपर तक जो फॉर्म भरे गये थे , उसके लिए पूरे देश भर से हज़ारों कार्यकर्ता बोरिया बिस्तर समेट कर यहीं दिन रात लगे रहे !
इस आन्दोलन ने कार्यकर्ताओं को तो अहिंसा सिखा दी ,पर पुलिस इससे अछूती रह गयी ! इसलिए हर घेराव,हर धरने में ऐसी ऐसे डंडे पड़े , कि याद  न करना ही बेहतर है ! सर फूटे, हाथ टूटे, टांग टूटती पर हौसले टस से मस नही हुए ! चोट खा कर अस्पताल  जाते, पट्टी कराते और वापिस आन्दोलन में ! पुलिस को जितना इन लोगों ने छिकाया , शायद खूंखार से खूंखार बदमाशों ने नही छकाया !
एक बुरा दौर भी आया ! जब जंतर मंतर से पार्टी की घोषणा हुई, तो कार्यकर्ता सकते में आ गए ! सब अचानक लिए इस निर्णय से ठगा महसूस करने लगे ! बिना किसी गलती अरविन्द को गलत समझा गया, जिसे साफ़ करने के लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं के नाम एक चिट्ठी लिखी ! इन्हें संदेह के बादल हटा दिए पर , जैसे ही अन्ना अलग हुए ,फिर विकट स्थिति बन गयी ! अब ये अधर में रह गए ! किस तरफ जाएँ ! पर अंत में वही  फैसला   हुआ ,कि हम जब व्यवस्था परिवर्तन की बात कर  रहे है, तो वो बिना  विकल्प के मुमकिन नही ! बिना राजनीति में आये विकल्प कैसे दें ? इसी सवाल का जवाब खुद ये कार्यकर्ता बन गए और अरविंद के  साथ हो   लिए ! इन्होने उस वक़्त अरविंद का साथ दिया ,जब उन्हें सबसे ज्यादा जरुरत थी सहारे की और भरोसे की !
आगे का सफ़र साथ ही तय करेंगे !पर ये कारवां रुकने वाला नही है ! लोग जुड़ते जायेंगे और सपने  भी  सच होंगे !
(भूल चूक - लेनी देनी   )




11 comments:

  1. Hahahahahah ...very nice!! Well done for promoting my Company!! Again will say!! you are just amazing :)

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  2. कुछ साल पहले मैं एक आई.टी. स्टूडेंट हुआ करता था, अचानक से अन्ना आन्दोलन शुरू हुआ, उसमे जुड़ गया.. और फिर अरविन्द जी ने "आम आदमी पार्टी' बना ली तो उसमे जुड़ गया.. राजनीती को हमेशा गाली देता था.. पर आज एक राजनितिक दल का सक्रिय कार्यकर्ता बना हुआ हूँ...
    आम आदमी जिंदाबाद

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  3. आप के सारे देशभक्त कार्यकर्ताओ को नमन !!

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  4. bhaut khub likha hai chanchal.......you are just amazing :)

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  5. shuru se hi Anna andolan se juda raha hoon..lekin jab jantar mantar par 10 din gujarne ke baad Arvind ji ne party ka elaan kiya to mujhe kafi gussa aaya aur mai us samay rone laga Q ki hum logo ne usi raat soniya gandhi ka gherao karne ka plan banaya tha...
    lekin ghar aane ke baad kafi der tak socha fir laga ki wastav me ab koi chara nahi bacha hai . aur fir dil se party ke sath bhi jud gaya aur aaj gurgaon ka ek sakriya karykarta hoon.poore AAP Gurgaon office ka dekh rekh aur managment mere upar depend hai..
    lekin aaj bhi ANNA ji aur ARVIND ji ko dil se chahta hoon..jai hind..

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  6. naman karta hu aap sabko..sab chahte hai badlav aaye par aap log kar rahe ho hazaro sapne ko daanv pe laga kar..Aisa lagta Aazadi ki ladayi ladi ja rahi hai aur itehaas(history) fir se leekha jaa raha hai..

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  7. बधाईयाँ ! CARRY ON:)

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  8. Yaki nahi hota ki, itna maja aa raha hai ye blogs padne me par pata nahi aankhein aansu kyo baha rahi hai....
    Jai hind..
    Jai Bharat...

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  9. superb writing again - keep it up - very well done
    Best wishes to yoy , your team & Aam Aadmi.
    Hats off - Lage raho dosto

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  10. अब तो लगता है आपकी तारीफ़ करने के लिए मुझे यहाँ एक पूरा ब्लॉग ही लिखना पडेगा। काश भारत के इतिहास को भी कोई इसी तरह सहजता से लिखता ताकि बचपन मे इतिहास याद करने में पशीने न छूटते। बस आप लिखती रहिएगा, हमें प्रेरणा मिलती रहेगी।

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