निहायती दिलचस्प और अनोखा
जरिया गुफ्तगू करने का. दरअसल कहें तो ये गूंगे बहरों का एक ऐसा मंच है, जहाँ न कोई बोल पाता है और न सुन पाता
है. बस मूक-बधिर बातचीत होती है.
आवाजें नही आती, ठहाके भी
नही गूंजते, न कोई दांत किटकिटाता है.
अजी कहीं आपने इसे “सोशल”
समझने की भूल तो नही कर दी. जी करियेगा भी नही. इससे ज्यादा असामाजिक प्रवृति का
कोई मंच हो नही सकता.
“मेरा” भी एक यादगार सफ़र
रहा इसके साथ, जिसे मैंने अब हमेशा के लिए
अलविदा कह दिया. पर सफ़र इतना लम्बा था, इतना उतार चढ़ाव भरा रहा, इतना ख़ास और ज़ाया सा
था कि जिंदगी से क्या लेकर गया पता नही, पर हाँ बहुत कुछ देकर गया. आइये आप भी सफ़र
पर चलिए, कुछ कदम, यकीन मानिए, बोर नही होंगे, हाँ कहीं अपनी तस्वीर दीखी तो आप
मुह छिपाए बिना या मुस्कुराए बिना नहीं रह पायेंगे, ये दावा है.
2010 जुलाई में मैंने
ट्विटर अकाउंट बना लिया. उस पर अकाउंट बना तो लिया पर गूंगों बहरों की बस्ती में
गवैया क्या गाये और क्या सुनाये. बोलने में इतनी जबर थी, कि तालुआ मुह को काटता कि
क्यों दांतों बीच दबाये बैठे हो अगर बोलना ही नही है.
दिसंबर 2010, मजे मजे में ये अकाउंट बना लिया. “फेसबुक”.
इसके जितनी भ्रामक दुनिया
तो चाँद में पेड़ के नीचे बैठ कर सूत काटती नानी माँ की भी नही थी.अब ग्रह नक्षत्र
शुरू होने वाले थे. फेसबुक पर राहू, और ट्विटर पर केतु मेरे इंतजार में था. मैं
मनमौजी सी चल दी अपनी धुन में.
पहले पहल फेसबुक पर जाने का
मन नही करता था. क्यूंकि वहां ज्यादा अनजान दुनिया लगती. ट्विटर पर मन लगता था,
क्यूंकि वहां अनुपम खेर थे, “जो दिल है कि मानता नही” से मुझे अपने लगते थे,अमिताभ
थे जो तब से मेरे 6 फीट के हीरो थे जब मैं 1 फीट से थोड़ी सी ही ज्यादा थी,, अब आप फेसबुक
ट्विटर की दुनिया में धीरे से अपने होठ दांतों में दबाकर आँख मारकर कहेंगे अब कौन
सी ज्यादा बड़ी हो गयी हो. खैर. फिर ट्विटर से मोह भंग हुआ तो मैं चल दी फेसबुक पर.
यहाँ से जबर का जब्रिस्तान चालु हुआ.
फेसबुक पर “whats on ur mind” ने दुनिया बदल दी. मैंन देखती थी, कि लोग दादा और नाना को फूंक कर आते और उस्तरा
फिराते फिराते एक हाथ में फ़ोन लेकर status अपडेट करते “ दिल दुखी है, नाना अब नही
रहे”, मन में सोचती बेटा अभी ज्यादा दूर नही निकले होंगे, तेरी इन हरकतों को देखकर
कहीं वापिस ना आ जाए तुझे लिवाने.
मज़ा तब आता जब इस पोस्ट को
like मिलते. ग़दर मच जाता खोपड़े में सोचकर कि इसके नाना के निकल जाने से ये इतना
खुश क्यों है? शुरू में सब हंसी मजाक का जरिया था, पर बाद में चीज़ें गंभीर हुई.
फोटो अपलोड करके उनकी लाइक कम्मेंट गिनने में पहले गुल्लक में से चिल्लड झडाने और
गिनने जित्ता मज़ा आता पर बाद में अगले पल ही इनके ऊपर का खतरा भी समझ आने लगा.
जब दौर शुरू हुआ हज़ारे के
आन्दोलन का, तो साढ़े साती मेरी गैल हो ली. आँख खुलने से लेकर इन गोटियों के पट बंद
होने तक बुढऊ का चेहरा आँखों से ओझल नहीं होता. दिन में जितनी बार दिल घबराकर या
ख़ुशी से धडकता उतने स्टेटस फेसबुक पर खुद ब खुद पहुँच जाते. बालों की फसल नींद बहा
ले गयी, और आँखों की बत्ती गोद में रखी पेटी ने बूझा दी.
वो जो आन्दोलन हुआ करते थे,
उनमे एक डंडा नही खाया कभी, पर इस आभासी दुनिया में अन्ना और उनके साथी के नाम पर
ब्रह्म अस्त्र, नारायणा अस्त्र, पाशुपति अस्त्र, गदा, भाला, चाक़ू, छुरी, सब चला
ली. पूरे दिन की इस मारकुटाई के बाद रात को जो बिस्तर पर पड़ती , तो किसी मायावी,
असुर सरीखे मुख्यमंत्री की आसुरी सेना,
कभी गन्ना, कभी खुजली अटरम शटरम नामों की बांसुरी कान में बजाते रहते और
नींद मेरी आँखों का सपना बन कर रह गयी.
एक और नया पाठ पढ़ा. अल्लहड़,
हठी, जुनूनी, निश्छल, इकतरफा प्रेयसी कैसे बनते हैं. जिसे सब भगवान् मान बैठे हो, उसे कैसे एक आम इंसान
की तरह टूट कर चाहते हैं, कैसे नज़र में रखकर नज़रंदाज़ होते हैं, प्रेम के कसीदे ऐसे
बेबाकी से पढ़े, कि फेसबुक से लेकर ट्विटर तक इस चाहत की कथा बांचने लगे लोग. सब
जिसे नज़रें झुकाकर सजदा करने से भी कतराते रहे, उसके पीछे वो दीवानगी की हद पार कर
दी, कि मैंने जिसे राम मान लिया था, लोग उसे मेरा कृष्ण बना गए.
सब कुछ इतना मजेदार, इतना
हंसाने वाला नही है यहाँ. यहाँ म्रग्रीचिका रुपी रिश्ते कितने घिनोने हैं. यहाँ जो
जितना नज़दीक है, वो उतना बड़ा बहरूपिया है. कहते हैं वर्चुअली हम किसी पर ज्यादा
प्रभाव डाल सकते हैं, क्यूंकि उसमे हमारे चेहरे के हाव-भाव, शरीर की मुद्रा, और
सबसे ख़ास आत्मा का आइना “आँखें” नही देख पाते. कुछ चीज़ अगर आँखों के एक दम करीब
लाकर देखि जाए, तो धुंधली दिखती है, बस इसी से मात खा जाते हैं. जो कोई बहुत
नज़दीकी का दावा करता है, वो सबसे गैर होता
है. फ़ौरन उसे दूर धकेल दो, दरअसल वो आपके शरीर के ऐसे रूम, ऐसे निशान देखने नज़दीक
आता है जो दूर से नही दिखते और पीठ करते ही वो आपके साथ अंतरंगी संबंधों का दावा
कर दे, तो बहुत बड़ी बात नही. मनपसंद खिलौने को ना पाने की अपनी खीज का तेज़ाब चरित्र
पर फेंक कर उसे जला देना इस दुनिया का मनपसंद खेल है.,
दरअसल फेसबुक, ट्विटर पर
दिन रात देश की चिंता और समाज को बदलने का दावा करने वाली एक विशालकाय जमात इस
दुनिया के “एलियन” की ऎसी टोली है जो बाहर की दुनिया या कहें “धरती” धरातल के सत्य
से कोसो दूर हैं.
ये इंसान को रोबोट बना रही
है, जो “LOL”, K, Hmmm, और “hahahaha को खुदा का करम मानकर इससे आगे की हर हकीकत
को बस “spam” माने बैठा है, सुनने से पहले ही सब “कूड़े के डिब्बे” में.
इस चरसी तबेले के बाहर सब
साफ़ दिखाई भी देता है, और सुनाई भी देता है.
रोज़ रोज़ अकाउंट
“डीएक्टिवेट” करने वाले, जो किश्तों में “चैन-ओ-सूकून” ढूँढने निकलते हैं, वो “I
am back” के साथ फिर हारे सिपाही का तमगा लेकर वापिस आते हैं. “Delete” का आप्शन
ज़िंदगी में कभी कभी सिर्फ हटाता नही है, बल्कि बहुत कुछ जोड़ भी देता है.
कुछ चले जाने पर दुखी हैं, कुछ दांत छिपा कर हंस रहे हैं, कुछ सवालों के घेरे में है, और
कुछ इंतज़ार में हैं, कुछ बेफिक्र हैं..... फ़िक्र मत कीजिये, मेरी दुनिया बोलती, सुनती ,हंसती,खेलती,जागती सोती
सब है, रोबोट से इंसान बनने का सफ़र , इंसान से रोबोट बनने के सफ़र से ज्यादा दिलचस्प है.
बहुत जहाँ बाकी
है...........................अब मुलाक़ात नही होगी. “शब्बा खैर”