Thursday 1 August 2013

“सोशल मीडिया”-ये इंसान को रोबोट बना रही है,





निहायती दिलचस्प और अनोखा जरिया गुफ्तगू करने का. दरअसल कहें तो ये गूंगे बहरों का एक ऐसा  मंच है, जहाँ न कोई बोल पाता है और न सुन पाता है. बस मूक-बधिर बातचीत होती है.
आवाजें नही आती, ठहाके भी नही गूंजते, न कोई दांत किटकिटाता है.
अजी कहीं आपने इसे “सोशल” समझने की भूल तो नही कर दी. जी करियेगा भी नही. इससे ज्यादा असामाजिक प्रवृति का कोई मंच हो नही सकता.
“मेरा” भी एक यादगार सफ़र रहा इसके साथ, जिसे मैंने अब हमेशा  के लिए अलविदा कह दिया. पर सफ़र इतना लम्बा था, इतना उतार चढ़ाव भरा रहा, इतना ख़ास और ज़ाया सा था कि जिंदगी से क्या लेकर गया पता नही, पर हाँ बहुत कुछ देकर गया. आइये आप भी सफ़र पर चलिए, कुछ कदम, यकीन मानिए, बोर नही होंगे, हाँ कहीं अपनी तस्वीर दीखी तो आप मुह छिपाए बिना या मुस्कुराए बिना नहीं रह पायेंगे, ये दावा है.
2010 जुलाई में मैंने ट्विटर अकाउंट बना लिया. उस पर अकाउंट बना तो लिया पर गूंगों बहरों की बस्ती में गवैया क्या गाये और क्या सुनाये. बोलने में इतनी जबर थी, कि तालुआ मुह को काटता कि क्यों दांतों बीच दबाये बैठे हो अगर बोलना ही नही है.
दिसंबर 2010,  मजे मजे में ये अकाउंट बना लिया. “फेसबुक”.
इसके जितनी भ्रामक दुनिया तो चाँद में पेड़ के नीचे बैठ कर सूत काटती नानी माँ की भी नही थी.अब ग्रह नक्षत्र शुरू होने वाले थे. फेसबुक पर राहू, और ट्विटर पर केतु मेरे इंतजार में था. मैं मनमौजी सी चल दी अपनी धुन में.
पहले पहल फेसबुक पर जाने का मन नही करता था. क्यूंकि वहां ज्यादा अनजान दुनिया लगती. ट्विटर पर मन लगता था, क्यूंकि वहां अनुपम खेर थे, “जो दिल है कि मानता नही” से मुझे अपने लगते थे,अमिताभ थे जो तब से मेरे 6 फीट के हीरो थे जब मैं 1 फीट से थोड़ी सी ही ज्यादा थी,, अब आप फेसबुक ट्विटर की दुनिया में धीरे से अपने होठ दांतों में दबाकर आँख मारकर कहेंगे अब कौन सी ज्यादा बड़ी हो गयी हो. खैर. फिर ट्विटर से मोह भंग हुआ तो मैं चल दी फेसबुक पर. यहाँ से जबर का जब्रिस्तान चालु हुआ.
फेसबुक पर “whats on ur mind” ने दुनिया बदल दी. मैंन देखती थी, कि लोग दादा और नाना को फूंक कर आते और उस्तरा फिराते फिराते एक हाथ में फ़ोन लेकर status अपडेट करते “ दिल दुखी है, नाना अब नही रहे”, मन में सोचती बेटा अभी ज्यादा दूर नही निकले होंगे, तेरी इन हरकतों को देखकर कहीं वापिस ना आ जाए तुझे लिवाने.
मज़ा तब आता जब इस पोस्ट को like मिलते. ग़दर मच जाता खोपड़े में सोचकर कि इसके नाना के निकल जाने से ये इतना खुश क्यों है? शुरू में सब हंसी मजाक का जरिया था, पर बाद में चीज़ें गंभीर हुई. फोटो अपलोड करके उनकी लाइक कम्मेंट गिनने में पहले गुल्लक में से चिल्लड झडाने और गिनने जित्ता मज़ा आता पर बाद में अगले पल ही इनके ऊपर का खतरा भी समझ आने लगा.
जब दौर शुरू हुआ हज़ारे के आन्दोलन का, तो साढ़े साती मेरी गैल हो ली. आँख खुलने से लेकर इन गोटियों के पट बंद होने तक बुढऊ का चेहरा आँखों से ओझल नहीं होता. दिन में जितनी बार दिल घबराकर या ख़ुशी से धडकता उतने स्टेटस फेसबुक पर खुद ब खुद पहुँच जाते. बालों की फसल नींद बहा ले गयी, और आँखों की बत्ती गोद में रखी पेटी ने बूझा दी.
वो जो आन्दोलन हुआ करते थे, उनमे एक डंडा नही खाया कभी, पर इस आभासी दुनिया में अन्ना और उनके साथी के नाम पर ब्रह्म अस्त्र, नारायणा अस्त्र, पाशुपति अस्त्र, गदा, भाला, चाक़ू, छुरी, सब चला ली. पूरे दिन की इस मारकुटाई के बाद रात को जो बिस्तर पर पड़ती , तो किसी मायावी, असुर सरीखे मुख्यमंत्री की आसुरी सेना,  कभी गन्ना, कभी खुजली अटरम शटरम नामों की बांसुरी कान में बजाते रहते और नींद मेरी आँखों का सपना बन कर रह गयी.
एक और नया पाठ पढ़ा. अल्लहड़, हठी, जुनूनी, निश्छल, इकतरफा प्रेयसी कैसे बनते हैं. जिसे  सब भगवान् मान बैठे हो, उसे कैसे एक आम इंसान की तरह टूट कर चाहते हैं, कैसे नज़र में रखकर नज़रंदाज़ होते हैं, प्रेम के कसीदे ऐसे बेबाकी से पढ़े, कि फेसबुक से लेकर ट्विटर तक इस चाहत की कथा बांचने लगे लोग. सब जिसे नज़रें झुकाकर सजदा करने से भी कतराते रहे, उसके पीछे वो दीवानगी की हद पार कर दी, कि मैंने जिसे राम मान लिया था, लोग उसे मेरा कृष्ण बना गए.
सब कुछ इतना मजेदार, इतना हंसाने वाला नही है यहाँ. यहाँ म्रग्रीचिका रुपी रिश्ते कितने घिनोने हैं. यहाँ जो जितना नज़दीक है, वो उतना बड़ा बहरूपिया है. कहते हैं वर्चुअली हम किसी पर ज्यादा प्रभाव डाल सकते हैं, क्यूंकि उसमे हमारे चेहरे के हाव-भाव, शरीर की मुद्रा, और सबसे ख़ास आत्मा का आइना “आँखें” नही देख पाते. कुछ चीज़ अगर आँखों के एक दम करीब लाकर देखि जाए, तो धुंधली दिखती है, बस इसी से मात खा जाते हैं. जो कोई बहुत नज़दीकी का दावा करता है, वो  सबसे गैर होता है. फ़ौरन उसे दूर धकेल दो, दरअसल वो आपके शरीर के ऐसे रूम, ऐसे निशान देखने नज़दीक आता है जो दूर से नही दिखते और पीठ करते ही वो आपके साथ अंतरंगी संबंधों का दावा कर दे, तो बहुत बड़ी बात नही. मनपसंद खिलौने को ना पाने की अपनी खीज का तेज़ाब चरित्र पर फेंक कर उसे जला देना इस दुनिया का मनपसंद खेल है.,
दरअसल फेसबुक, ट्विटर पर दिन रात देश की चिंता और समाज को बदलने का दावा करने वाली एक विशालकाय जमात इस दुनिया के “एलियन” की ऎसी टोली है जो बाहर की दुनिया या कहें “धरती” धरातल के सत्य से कोसो दूर हैं.
ये इंसान को रोबोट बना रही है, जो “LOL”, K, Hmmm, और “hahahaha को खुदा का करम मानकर इससे आगे की हर हकीकत को बस “spam” माने बैठा है, सुनने से पहले ही सब “कूड़े के डिब्बे” में.
इस चरसी तबेले के बाहर सब साफ़ दिखाई भी देता है, और सुनाई भी देता है.
रोज़ रोज़ अकाउंट “डीएक्टिवेट” करने वाले, जो किश्तों में “चैन-ओ-सूकून” ढूँढने निकलते हैं, वो “I am back” के साथ फिर हारे सिपाही का तमगा लेकर वापिस आते हैं. “Delete” का आप्शन ज़िंदगी में कभी कभी सिर्फ हटाता नही है, बल्कि बहुत कुछ जोड़ भी देता है.

कुछ चले जाने पर  दुखी हैं, कुछ दांत छिपा  कर हंस रहे हैं, कुछ सवालों के घेरे में है, और कुछ इंतज़ार में हैं, कुछ बेफिक्र हैं..... फ़िक्र मत कीजिये, मेरी  दुनिया बोलती, सुनती ,हंसती,खेलती,जागती सोती सब है, रोबोट से इंसान बनने का सफ़र , इंसान से रोबोट  बनने के सफ़र से ज्यादा दिलचस्प है.

बहुत जहाँ बाकी है...........................अब मुलाक़ात नही होगी.   “शब्बा खैर”
 

Sunday 16 June 2013

I am a proud daughter



बुढ़ापे की दहलीज़ पर कदम रखते ही....
मेरे घर का माहौल कुछ संगीन सा हो गया है.....
जहाँ परोसी जाती थी चुपड़ी रोटियां .....
वहां अब सब्जी में नमक भी कम हो गया है.......

जिन उँगलियों को कस कर पकड़ा था जिसने.........
उन हाथो को छुए अब एक ज़माना हो गया है....
तजुर्बा बढ़ गया है,बालो की फसल पक गयी है मेरी....
पर मेरा बेटा अचानक ज्यादा सयाना हो गया है.....

अब कमरे में उजाला नही रहता...
आँखें धुंधला गयी,या जीवन में अँधेरा घना हो गया है....
कपकपाते कदम ढूंढ नही पाते आसरा..
घर का सबसे पिछड़ा कोना,मेरा ठिकाना हो गया है...

पर मैं मायूस नही.अब भी एक उम्मीद बची है...
जिसे पाला था नाजों से,वो गुडिया अब भी सगी है....
अब तो त्योहारों पर उसी का इंतजार रहता है...
उसके छूने में अब भी पहले जैसा दुलार रहता है....

आज मुट्ठी में छुपाकर बताशे लायी है....
उसकी माँ जो ले गयी थी,वो मिठास वापिस लायी है....
बेटा बगल में रहकर भी अपना न हो सका....
और दुनिया कहती है,की बेटी "परायी " है..

Friday 7 June 2013

गर ये प्रेम दिवस है तो वो क्या था .....


"प्रेम दिवस"!!गर प्रेम दिवस है ये,
तो फिर वो तब क्या था बोलो,
जिस दिन मैंने आँखों में इक,
नन्हा सपना घोला था तब,जब,
तुम उन आँखों पर चुम्बन कर,
प्रेम की वर्षा जब करते थे,तब
बोलो,जब मैं कुछ सकुचाई तुमसे,
मिलने आई थी,तुम बैठे थे,लोग
बहुत घेरे थे ऐसे,जैसे वो ही हैं सब
अपने और मैं ही हूँ इक मात्र परायी।

गर ये प्रेम दिवस है तो बोलो वो क्या था,
जब मुट्ठी बांधे मैं बैठ गयी थी,और
रही थी पूछ यही,बोलो क्या है भीतर
इसके,एक नन्ही सी इच्छा बांधे,जो अपने
मन की मैं फिरती थी,क्या तुम इसको
धारण कर मांग में मेरी भर दोगे कुछ
वचन वो ऐसे ,जो नही मिले तो शरीर भले,
पर आत्मलींन मैं हो जाऊं तुममे,कुछ ऐसा कर दोगे !!

गर ये प्रेम दिवस है तो बोलो वो क्या था,
जब तुम बैठे थे पास मेरे और मैं दूर बहुत थी,
कुछ सोच सोच कर हैरान ऐसे,कैसे तुम हो
सकते हो सबके ,जब मैं करती हूँ प्रेम बहुत,
चरणों की धूल से श्रृंगार पहर हर चार,तो फिर
क्यों रहती हूँ,चौखट पर दिन रात,बात यूँ
खुद से ही बतलाती थी!!

गर यह प्रेम दिवस है,तो बोलो वो क्या होगा,
जब तुम बरसों की तृष्णा करने शांत,आओगे
द्वार मेरे,और मैं हो जाउंगी तृप्त,कि बस न
एक जनम और लुंगी,इस दुनिया में आकर
फिर न दर्द बिछोह,झेल,दुर्दत दशा कर लुंगी
न फिर अपनी !!
यही दिवस होगा प्रेम का इक बार,अगर तुम
जलती सी चिंगारी मन में दो अपने अधरों से
टेक बुझा दोगे जिस दिन,मैं भी कह कह सबको
बतला दूंगी,ये है प्रेम दिवस तो आज *

Wednesday 5 June 2013

क्यूंकि इसकी हैसियत किलकारी मारने की भी नही है





मेरे पेट में होने की खबर से,घर में मातम सा पसर जाता है....
जो जननी है जग की,खुद उसे ही जन्मने नही दिया जाता है.....
माँ के हंसी का अंदाज़,क्यों अचानक बदल जाता है???
मेरी पहचान करने का पाप,जब वक़्त से पहले किया जाता है.....

नन्ही सुनती सब है,कुछ सहमी सहमी सी भीतर....
न जाने क्यों सब रूठे हैं,मेरी आने की खबर सुनकर....

जब माँ ने पेट पर हाथ फेरा,तो क्या कहना चाहती थी??
मुझे प्यार से सहलाती थी,या सदा के लिए सुलाती थी??
पापा भी तो रोज़ कान में,मेरी धडकन सुनते थे...
फिर वो मेरे नही तो,आखिर किसके सपने बुनते थे.....

कल रात को माँ ने शायद,मीठी रोटी भी नही खायी थी!!!
तभी तो मेरे हिस्से की चीनी,मुह में नही आई थी....
अंदर हूँ,लाचार हूँ,कुछ कर तो नही सकती....
भूखे पेट सारी रात,सो भी तो नही सकती.....

क्यों गुस्सा हैं सब मुझसे इतना..
क्या मैं ज्यादा कुछ ले जाउंगी???
इतनी नफरत पाकर मैं....
माँ के अन्दर ही मर जाउंगी
¨       <> <>  <> <> <> <> <> <>

यहाँ बहुत अँधेरा है ! अब मैं माँ के गर्भ में आ गयी हूँ ! शायद यहाँ मैं सबसे ज्यादा सुरक्षित हूँ ! जगह कम है ,पर मैं यहाँ मालिक की तरह रह सकती हूँ ! माँ जो खाती है, मुझे भी खिलाती है ! कभी मीठा , कभी तीखा , कभी खट्टा , कभी नमकीन ! मेरे मुह में दिन में एक बार चीनी ज़रूर आती है ! शायद माँ मेरे होने की खुशी में !

दिन में कई बार माँ मुझे सहलाती है, हाथ फेरती है , कभी मैं चुपचाप सुकड कर एहसास लेती हूँ, कभी शरारत में पैर मारती हूँ ! मुझे यहाँ सब सुनाई देता है ! आज माँ को डॉक्टर के पास जाना है ! शायद मुझे देखने ! पहली बार देखेगी माँ , पापा, दादी भी ! कितने खुश होंगे सब !

मैं लड़की हूँ ! दादी रोते हुए बता रही है ! पर रोते हुए क्यों? घर में अजीब अजीब सी आवाजें आ रही हैं ! सब बदला सा लग रहा है ! न माँ ने एक बार भी मुझे सहलाया, न हाथ फेरा ! आज मैं भूखी हूँ, एक दम ! न माँ ने भीगी रोटी खायी, न चीनी !
बहुत भूख लगी है ! पर खुद खा नही सकती ! अब बहुत दिन हुए, सिर्फ सूखे सूखे से रोटी के टुकड़े ही खा पाती हूँ !

लड़की हुई है ! इसका नाम खुद ही रख दो ! क्या पंडित को बुलाना , क्या सत्यनारायण की कथा करवाना ,वंश बढ़ता, लड़का होता, खानदान का नाम होता ,पर कुंडली मारकर हमारी राशि में आ गयी ! यही कुछ हाल होता है अधिकतर घरों में हमारे देश में लड़की के होने के बाद ! कही तो लड़की राजकुमारी सी पलती हैं , कहीं अभिशाप सी ढोही जाती हैं !

कहीं किसी छोटे या बड़े दवाखाने के भीतर कचरे के डिब्बे में आधे या साबुत भ्रूण के रूप में,कभी चौराहे पर रखे कूड़ेदान में जानवर की खायी या नोची हुई पोटली  सी, कभी ससुराल की रसोई में अधजली या फूंकी हुई जिंदा लाश,कभी घर की चारदीवारी में चाचा, मामा, बाप ,भाई के खेलने का खिलौना बनकर ,...कभी सड़क, बस, ट्रेन,दफ्तर में हवस की शिकार बन कर ,... हज़ारों दामिनी रोज़ जीने के लिए संघर्ष कर रही हैं ,..फर्क इतना है की कभी पूरा देश उनकी आवाज़ बन जाता है,तो कभी वो खुद भी अपने लिए आवाज़ नही उठाती ,.....समाज को बेहतर बनना है ,तो शुरुआत भ्रूण की रक्षा से करनी होगी ,........क्यूंकि इसकी हैसियत किलकारी मारने की भी नही है

Thursday 30 May 2013

मीरा,शबरी के हिस्से तपस्या आती है,हरि को हमेशा राधा,सिया ले जाती है


"मैं खामोश नदी बहती,तुम विस्तृत सागर जैसे,
 टेढ़ी मेढ़ी बहकर ही,कभी तो तुममे मिल जाउंगी"!


"मन मेरा जैसे गंगा,तुम इस पर बहते दीपक, 
अक्स तुम्हारा थामे मैं,कल कल बहती जाउंगी"!
 

"तुम गुजरो जिस पथ से जिस दिन,ध्यान रहे,वहीँ मिलूंगी,
तुम से पहले ही राहों में ,पुष्प मैं बन बिछ जाउंगी" !
 

"नही छुए ऊँगली को ऊँगली,फिर भी पूरी हो जाउंगी!!
 तुम देखोगे एक नज़र मुझे,मैं सारे तीरथ पा जाउंगी"!!
 

"मन मेरा पंचवटी,तुम राम मेरे इस जीवन के, 
बिना मिले बनवास मुझे,मैं बैरागन बन जाउंगी"!!
 

"पाँव पखारूँ 4 पहर,पलकों से पोंछूं घाव सभी, 
मैं पट्टी बन कर बाहों की,चरणों में बंध जाउंगी"!!


 <<<<मेरे मंदिर के भगवान न जाने कितनी रिश्वतों को डकार कर बैठे हैं ! 11 , 21 ,31 , 51 , .... का प्रसाद चढ़ाउंगी ,पर अगले जनम में "सुनीता केजरीवाल " बना देना , अगर वो भी नही तो "बिभव" ही बना देना , वरना अरविन्द का चश्मा , शुगर की गोली,  डाइट कोक, नीली वेगनार की आगे की सीट, मूछें, कौशाम्बी ऑफिस की वो वाली कुर्सी, दाल वाली नमकीन ही बना देना ! "सुनीता केजरीवाल"  के इतने विकल्प दिए हैं , क्यूंकि हम तो जाने ही विकल्प के लिए जाते हैं !

रामलीला मैदान से वापिस आकर जब अखबार में "अरविन्द" की फोटो ढूंढनी शुरू की, और उनकी फोटो काटकर पलंग पर उल्टा लेटकर देखनी शुरू की, तो किसको क्या कहाँ पता था, कि ये बात इतनी दूर तलक जायेगी !

पर कहानी तो शुरू हो गयी ! शाहिद कपूर शहीद हो गया ,सलमान का साल निकल गया, अब तो सपनो में एक ही हीरो बिना टोल टैक्स आ जा सकता था ! मेरी किताबों के पन्ने उलटो तो अब भी कहीं न कहीं अरविन्द का चेहरा दिख ही जाएगा !

जो शायर , जो कविता , वक़्त की परतों में दफन हो चुकी थी, उसे ग़ज़ल मिल गयी ! अब तो निगाहें लिखने लगी और तमन्नाएं उड़ने लगी !

जब पलंग के सिराहने पर वो फोटो लगाई , तो आप क्या जाने अरमान कौन से आसमान पर थे ! पुरानी प्रेमिकाएं जैसे शरमाया करती हैं, वो मेरा हाल था ,, और उन प्रेमिकाओं के पिता जितने बड़े दुश्मन साबित होते थे, उससे कम मेरे पापा नही थे ! भाड़े के टट्टुओं का काम 5 साल की भतीजी ने किया ! जब एक दिन इंस्टिट्यूट गयी, तो वो फोटो गायब कर दी !  पर इकतरफा इश्क कहाँ मरा करता है ! लाख पहरे लगा लो, मोहब्बत झरोखे में से उड़ जाती है जहाँ नापने ! पलंग से तस्वीर हटी,  तो आँखों में बस गयी !  जैसे इच्छाधारी  टार्गेट आँखों में बसा लेती है, मैं एक दम फोकस हूँ , अपने टार्गेट पर !

कभी  कभी तो यहाँ तक मन किया, कि खुद का नाम "भ्रष्टाचार" रख लूं ! कम से  कम अरविन्द की  जुबां पर हर वक़्त रहेगा तो, पर फिर ख्याल आया कि इसे तो वो दूर करना चाह रहे हैं, मैं चंचल ही ठीक हूँ !

इतनी बार मिली हूँ, पर उँगलियों पर गिन सकती हूँ  जितने शब्द बोले हैं अरविन्द ने मुझसे और मैंने अरविन्द से ! मुझे उनसे बात करने का जूनून नही है,  उनकी नज़रों के आस पास रहने की ख्वाहिश भी नही है ! मैं पीछे नही भागती ! एक बार जुलाई अनशन के वक़्त जब अरविन्द सबसे मिलने आये , तो अनशनकारियों में अकेली थी ,जो उठकर नही गयी ! लोगों ने कहा घमंड है, अकड़ है !

पर ऐसा कुछ नही था !  मेरी पहचान ये थी ही नही ! मुझे जनवाना नही था, जानना था !  मैं तो ये  हूँ , जो दिख रही हूँ ! जो अब हूँ ! मेरे लिए एक मुस्कराहट हज़ार मुलाकातों से बढ़कर  है !  मैं बंद कमरे में बैठ कर , अरसे तक अकेली उनके बारे में सोच कर गुज़ार सकती हूँ  !  मुझे दीवानगी दिखाने  के लिए कुछ अलग हटकर करने  की  जरुरत नही है ,  ये चाहत  ही मेरी शख्सियत बन  गयी !

एक रात नही गुजरी  जब इन्ही का सपना न आया हो ! वो अलग बात है , उन रात में मैं सोयी नही ! जब मैं कोई शायरी ,  कोई कविता , कोई इज़हार लिखती हूँ , दुनिया एक दम फ़िल्मी रिश्तेदारों की तरह आ ., आउच,..उफ़,..करने आ जाती है ! कोई दलील देता है , कि अरविन्द बुरा मान जायेंगे , कोई कहता है लोग क्या कहेंगे , कोई कहता है घर में माँ बाप नही है, कोई कहता है क्या बेवकूफी है !
मैं पहले तो इन  सलाहों का जवाब ही नही देती  ! आज इस ब्लॉग में दे रही हूँ , दोबारा मत पूछना , न कहना !

<<<इन्द्रधनुष आसमान में है, सबको देखने का हक है ,उस  पर जाने के सपने देखने का हक है , मेरे लिए ये  यही इन्द्रधनुष है ! सतरंगी ! मनमोहक, आकर्षक, स्वप्न सरीखे !  >>>

<<<सूरज आसमान में है ! क्या सुबह अकेली उस पर दावा करेगी? आसमान का कॉपीराइट है उसकी रौशनी पर ? मेरी यही धूप है ये  , यही उजाला , यही तपिश !>>>

 <<<बादल बरसते हैं, भिगोते हैं , ठंडक देते हैं ! मेरे  लिए  वो यही  सीली सी  , अलसाई सी, कुछ जागी कुछ सोयी सी , बरसात की इक रात है ये  ! >>>

<<< कविता है कोई, उसकी साज़ इसी एक नाम से सजती है, उसकी धुन बस यही एक नाम गाती   है , क्या लिखना छोड़ दूं, क्या गाना छोड़ दूं , क्या साज़ पर थिरकना छोड़ दूं ? >>>

ये दिखावा तो हो नही सकता , क्यूंकि  बदले में कुछ मिलने की शर्त तो हो नही सकती ! जब पत्थर की मूर्ति पूजा अपराध नही, उस पर सजा नही, जेल नही, कैद नही, तो प्रेम पूजा क्या आतंकवाद फैलाती है ! बताओ मेरी चाहत में कहाँ नक्सल वाद की बू है ! किस को शहादत दी , सिवाय खुद के !

अब भैया रपट लिखाय दो, के गिरफतार कराय दो, के दरोगा से मिलवाय दो, ई का तो कछु होने से रहा !





Tuesday 28 May 2013

आन्दोलन - मैंने क्या खोया,क्या पाया

जिंदगी जी रही थी ! एक दम मस्त ! कोई टेंशन नही, कोई ड्रामा नही , सब एक दम बढ़िया ! न देश में कोई बुराई दिखती थी, न सरकार में ! और इससे बड़ी बात क्या हो सकती है , कि "राहुल गाँधी भी अच्छा लगता था" ! उफ़ ! खैर !
भाजपा एक दम मासूम सी पार्टी लगती थी , जो बेचारी सी कांग्रेस से जीत नही पा रही थी ! दया आती थी ! लोगों पर गुस्सा आता था जो इसको जीता नही पा रहे थे ! अटल जी के टाइम से भाजपा से लगाव था ! जैसे आज कुछ लोग सिर्फ मोदी की वजह से भाजपा को मानते हैं , वरना कब के तिलांजली दे देते, वैसे ही मैं वाजपेयी जी  की वजह से भजपा को बहुत मानती थी !
घूमना फिरना , मूवी , मटर गश्ती , शॉपिंग , ऐश में सब कुछ ! घोटाले के नाम पर तो मुझे याद भी नही ,कि मेरे चेहरे पर कभी कोई शिकन भी आई हो ! पता ही नही  था ,घोटाले जैसा कुछ होता भी है देश में !  और होता भी तो , अंदाज़ यही था" कुछ नही हो  सकता इस देश का"  ! यही सोच कर सब कुछ एक दम पटरी पर था !
तभी एक भूचाल आया ,और सब कुछ उड़ा ले गया ! पर कुछ भूचाल अच्छे होते हैं ! 2 साल पहले जनलोकपाल आन्दोँलंन ने सबकी तरह , मेरी  जिंदगी भी बदल दी ! अन्ना के अनशन के वक़्त मैं वहां सिर्फ दर्शक बनकर गयी थी !  सच कहूँ तो  मुझे मालुम भी नही था ,कि जन्लोकपाल कानून है क्या,इसकी मांगे क्या हैं , और ये मिलेगा  भी या नही ! मेले की तरह घूम आई पहले दिन तो ,पर मन में छिपा देश भक्ति का कीड़ा जो ,मैंने कभी नही देखा था , बेचैन हो उठा ! एक दिन , दो दिन ,तीन दिन ,ऐसे कर करके दिन बढे और साथ ही जज्बा भी !
आन्दोलन जब भी होते, मैं हमेशा गयी,  चाहे कितना भी जरूरी काम हो , पर आन्दोलान से जरूरी नही हो सकता था ! जिंदगी की प्राथमिकताएं बदलने लगी  ! जो पहले सबसे जरूरी था, वो अब जरूरत की लाइन में सबसे पीछे चला गया , और पहले नंबर पर देशभक्ति इतरा कर खडी सबको मानो मुंह चिढ़ा रही हो ! इंसान की फितरत है, जब हम बदलते हैं , तो हम उम्मीद करने लगते हैं कि हमसे जुड़े लोग इसे खुद ही समझ लें और खुद ही सहज हो जाएं ! हम उन्हें ये बदलाव स्वीकार करने का वक़्त भी नही देते ! यही हुआ ! पहले मम्मी जहाँ जिंदगी की सबसे बड़ी पिलर थी, उनके लिए ही वक़्त नही बचा ! पडोसी की तरह मिलना हो गया ! जिंदगी में जो शख्स सबसे कीमती था, वो खुद की जगह तलाश रहा था, पेपर देने की तारीख आकर निकल जाती ,और फॉर्म भरने की याद नही रहती ! रात भर जागना और दिन भर सोने के पल ढूंढना ! कुल मिलाकर सब इतना अवयास्थित हो गया था !
सब कहते ये आन्दोलन ज़मीनी नही,क्यूंकि ये तो फेसबुक और ट्विटर से चलता है,..लोग ज़मीं पर जाकर लोगो से बात नही करते....ये दलीलें इतनी मजबूती से रखी जाती और मिनट भर में आन्दोलन को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता....मेरा मानना इसे बिलकुल उलट था ...सोशल मीडिया या कहें किसी भी माध्यम को आप पूर्ण रूप से नकार नही सकते ! आन्दोलन में जितनी भूमिका ज़मीनी कार्य की रही,उतनी नही तो बहुत बड़ी भूमिका सोशल मीडिया की भी रही....अगस्त क्रान्ति के समय इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया ने आन्दोलन को दिन रात घर घर तक पहुँचाया....ऐसा कवरेज शायद ही कभी हुआ हो,लेकिन इसके तुरंत बाद सरकार ने अपनी पकड़ चैनलों पर कड़ी कर दी....पत्रकारों के सुर बदलने लगे....खेमे बदले गये,...आम जनता की साथी रही भारतीय मीडिया अचानक सरकार की वकील बन गयी,...जो मामला भी खुद रखती,दलील भी देती और फैसला भी सुना देती....उस वक़्त सबसे बड़ा सहारा बनकर सोशल मीडिया ने ही ख़बरों का मैदान संभाला...टीम अन्ना के बारे में जब गलत खबरें मसाला लगाकर परोसी जाती,तो बेचैन समर्थकों को सोशल मीडिया ही एक सहारा दिखता, जहाँ से इन ख़बरों का खंडन कर सच सामने लाया जाता था....तमाम बड़े बड़े सितारों ने अपने समर्थन को इन्ही के ज़रिये आन्दोलन तक पहुँचाया....देश देश से कोने कोने तक हर पल आन्दोलन के साथी एक दूसरे की असमंजस की स्थिति को सुलझाने में लगे रहे....आज अगर हम लोगों को आन्दोलन के विषय में समझाना चाहे,.तो शायद एक दिन में मुश्किल से 10 लोगों तक अपनी बात पहुंचा पाए,वहीँ फेसबुक,ट्विटर पर एक पोस्ट हज़ार लोगों तक जाती है,वो भी चंद मिनटों में...ऐसा कहकर मैं उन लोगों के योगदान को कम नही आंक रही,जो व्यक्तिगत रूप से लोगों तक पहुँच रहे हैं...पर इस आन्दोलन का मकसद बहुत बड़ा है,..और वक़्त उतना ही कम...मकसद है जड़ तक जा चुके भ्रष्टाचार को ख़त्म करना...हर मोर्चे पर लड़ना होगा....इस बात को झुठलाया नही जा सकता कि युवा वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सा फेसबुक,ट्विटर से जुड़ा है....आप उस युवा को अपनी बात सुना रहे हैं,वो एक युवा आपकी बात को घर के बाकी दस सदस्यों तक पहुंचाएगा...कारवा बढ़ता जायेगा....अगर सोशल मीडिया इतना ही बेकार साधन होता ,तो सरकारी ज़मात इसका गला घोंटने पर आमादा नही होती !
आन्दोलन में जाते रहने के साथ सोशल मीडिया में जगह संभाली  ! अरविन्द ने कभी किसी को चैन से नही बैठने दिया, आये दिन कोई न कोई आन्दोलन,घेराव,कभी उनके उपवास ,अनशन !उनकी सेहत की फ़िक्र ने दिमाग को आराम नही  दिया  !जैसे ही आन्दोलन से अलग पार्टी बनी  , हम पूरी तरह से मीडिया से गायब हो गए ! मर्ज़ी जितने बड़े पोलखोल हो,खुलासा हो, मीडिया का ध्यान इन पर नही गया ! सब अम्बानी खुलासे के बाद ऊसकी  भेजी   एक चिट्ठी से हुआ ! लोकतंत्र का चौथा खम्बा ,पैसे और बिकाऊपन  की दीमक से जर्जर हो गया  ! सारा भार सोशल मीडिया पर था ! दिन रात की मेहनत शुरू हुई ! टीमें बनी ,पर वर्चुअल दुनिया में एक दुसरे को  समझ पाना बेहद मुश्किल ! लड़ाई झगडे , गलतफहमियां , सबने काम और मुश्किल किया ! लेकिन इस मोर्चे पर हारना मतलब बहुत बड़ी  हार ! जब आन्दोलन का पेज ले लिया गया , आईएसी नाम छीन गया , तो पास कुछ पहचान नही बची ! बस हम थे, और साथ थे अनगिनत हौसले ! क्रांतिकारियों का एक ऐसा जत्था देश में पैदा हो  गया था , जो सरकार को नाकों चने चबवा रहा था ! 6 लाख के पेज को छोड़ने के बाद फिर नयी   शुरुआत की ! आईएसी से अलग पहचान बनायी ! भाजपा और कांग्रेस के सोशल मीडिया को जहाँ पैसों पर रखे टट्टू अनाप शनाप पैसा लगाकर चला रहे थे, वहीँ  पार्टी के लिए इस मोर्चे पर भी निस्वार्थ कार्यकर्ता लगे हुए हैं !



अब इस आन्दोलन ने मुझे क्या दिया ? देश,देश भक्ति से हटा दो , तो एक ऐसा जूनून पाल लिया जिसे , दुनिया अरविन्द केजरीवाल के नाम से जानती है ! "जितनी शिद्दत से मैंने तुम्हे पाने की कोशिश की है,उतनी शिद्दत से सबने मुझे चिढाने की कोशिश की है" ! ;) दिन रात , सुबह शाम , हर सेकंड, हर पल अगर एक ख्याल दिमाग से नही गया , तो बस यही ! एक वो थी मीरा,एक मैं बन गयी ! एक झलक देखने के लिए क्या क्या नही किया ! एक मुस्कुराहट को पाने के लिए हदें पार कर दी ! मुझे पता है इस पागलपन का कोई अंजाम नही है ! वो आसमान है, और मैं धरती ! पर फिर भी मेरे ऊपर उसका साया पड़ना लाजिमी है ! मैं जितना मर्ज़ी चाह लूं, अछूती नही रह पाती ! मैं ऐसी ही रहूंगी ! ये जूनून हर दिन हर पल अब सिर्फ बढ़ेगा, कम नही होगा ! हज़ार रायचंद आये और गए कि ये मत कहो , वो मत कहो , ऐसा मत लिखो, वैसा मत लिखो ,पर सब हार कर चलते बने ! अब भी यही कहूँगी, नाकाम कोशिश नही  करनी चाहिए !  मेरी ख्वाहिशें , मेरी हसरतें , मेरी चाहते , सिर्फ मेरी है ! किसी और की नही , जो इस जूनून में काबिज है, उसकी भी नही और जो उस जूनून के दायरे में हैं, वो भी नही ! 


आगे आगे देखना है,क्या खोती हूँ क्या पाती हूँ ! पर अब डर नही लगता ! यहाँ मैंने खुद को जिया है ! यहाँ मैंने खुद को पाया है ! भविष्य को दाव पर लगाकर भले ही कुछ लोगों को ठेस पहुंची हो , पर खुद से नज़र मिला सकने की ख़ुशी है ही कुछ और !