Tuesday 28 May 2013

आन्दोलन - मैंने क्या खोया,क्या पाया

जिंदगी जी रही थी ! एक दम मस्त ! कोई टेंशन नही, कोई ड्रामा नही , सब एक दम बढ़िया ! न देश में कोई बुराई दिखती थी, न सरकार में ! और इससे बड़ी बात क्या हो सकती है , कि "राहुल गाँधी भी अच्छा लगता था" ! उफ़ ! खैर !
भाजपा एक दम मासूम सी पार्टी लगती थी , जो बेचारी सी कांग्रेस से जीत नही पा रही थी ! दया आती थी ! लोगों पर गुस्सा आता था जो इसको जीता नही पा रहे थे ! अटल जी के टाइम से भाजपा से लगाव था ! जैसे आज कुछ लोग सिर्फ मोदी की वजह से भाजपा को मानते हैं , वरना कब के तिलांजली दे देते, वैसे ही मैं वाजपेयी जी  की वजह से भजपा को बहुत मानती थी !
घूमना फिरना , मूवी , मटर गश्ती , शॉपिंग , ऐश में सब कुछ ! घोटाले के नाम पर तो मुझे याद भी नही ,कि मेरे चेहरे पर कभी कोई शिकन भी आई हो ! पता ही नही  था ,घोटाले जैसा कुछ होता भी है देश में !  और होता भी तो , अंदाज़ यही था" कुछ नही हो  सकता इस देश का"  ! यही सोच कर सब कुछ एक दम पटरी पर था !
तभी एक भूचाल आया ,और सब कुछ उड़ा ले गया ! पर कुछ भूचाल अच्छे होते हैं ! 2 साल पहले जनलोकपाल आन्दोँलंन ने सबकी तरह , मेरी  जिंदगी भी बदल दी ! अन्ना के अनशन के वक़्त मैं वहां सिर्फ दर्शक बनकर गयी थी !  सच कहूँ तो  मुझे मालुम भी नही था ,कि जन्लोकपाल कानून है क्या,इसकी मांगे क्या हैं , और ये मिलेगा  भी या नही ! मेले की तरह घूम आई पहले दिन तो ,पर मन में छिपा देश भक्ति का कीड़ा जो ,मैंने कभी नही देखा था , बेचैन हो उठा ! एक दिन , दो दिन ,तीन दिन ,ऐसे कर करके दिन बढे और साथ ही जज्बा भी !
आन्दोलन जब भी होते, मैं हमेशा गयी,  चाहे कितना भी जरूरी काम हो , पर आन्दोलान से जरूरी नही हो सकता था ! जिंदगी की प्राथमिकताएं बदलने लगी  ! जो पहले सबसे जरूरी था, वो अब जरूरत की लाइन में सबसे पीछे चला गया , और पहले नंबर पर देशभक्ति इतरा कर खडी सबको मानो मुंह चिढ़ा रही हो ! इंसान की फितरत है, जब हम बदलते हैं , तो हम उम्मीद करने लगते हैं कि हमसे जुड़े लोग इसे खुद ही समझ लें और खुद ही सहज हो जाएं ! हम उन्हें ये बदलाव स्वीकार करने का वक़्त भी नही देते ! यही हुआ ! पहले मम्मी जहाँ जिंदगी की सबसे बड़ी पिलर थी, उनके लिए ही वक़्त नही बचा ! पडोसी की तरह मिलना हो गया ! जिंदगी में जो शख्स सबसे कीमती था, वो खुद की जगह तलाश रहा था, पेपर देने की तारीख आकर निकल जाती ,और फॉर्म भरने की याद नही रहती ! रात भर जागना और दिन भर सोने के पल ढूंढना ! कुल मिलाकर सब इतना अवयास्थित हो गया था !
सब कहते ये आन्दोलन ज़मीनी नही,क्यूंकि ये तो फेसबुक और ट्विटर से चलता है,..लोग ज़मीं पर जाकर लोगो से बात नही करते....ये दलीलें इतनी मजबूती से रखी जाती और मिनट भर में आन्दोलन को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता....मेरा मानना इसे बिलकुल उलट था ...सोशल मीडिया या कहें किसी भी माध्यम को आप पूर्ण रूप से नकार नही सकते ! आन्दोलन में जितनी भूमिका ज़मीनी कार्य की रही,उतनी नही तो बहुत बड़ी भूमिका सोशल मीडिया की भी रही....अगस्त क्रान्ति के समय इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया ने आन्दोलन को दिन रात घर घर तक पहुँचाया....ऐसा कवरेज शायद ही कभी हुआ हो,लेकिन इसके तुरंत बाद सरकार ने अपनी पकड़ चैनलों पर कड़ी कर दी....पत्रकारों के सुर बदलने लगे....खेमे बदले गये,...आम जनता की साथी रही भारतीय मीडिया अचानक सरकार की वकील बन गयी,...जो मामला भी खुद रखती,दलील भी देती और फैसला भी सुना देती....उस वक़्त सबसे बड़ा सहारा बनकर सोशल मीडिया ने ही ख़बरों का मैदान संभाला...टीम अन्ना के बारे में जब गलत खबरें मसाला लगाकर परोसी जाती,तो बेचैन समर्थकों को सोशल मीडिया ही एक सहारा दिखता, जहाँ से इन ख़बरों का खंडन कर सच सामने लाया जाता था....तमाम बड़े बड़े सितारों ने अपने समर्थन को इन्ही के ज़रिये आन्दोलन तक पहुँचाया....देश देश से कोने कोने तक हर पल आन्दोलन के साथी एक दूसरे की असमंजस की स्थिति को सुलझाने में लगे रहे....आज अगर हम लोगों को आन्दोलन के विषय में समझाना चाहे,.तो शायद एक दिन में मुश्किल से 10 लोगों तक अपनी बात पहुंचा पाए,वहीँ फेसबुक,ट्विटर पर एक पोस्ट हज़ार लोगों तक जाती है,वो भी चंद मिनटों में...ऐसा कहकर मैं उन लोगों के योगदान को कम नही आंक रही,जो व्यक्तिगत रूप से लोगों तक पहुँच रहे हैं...पर इस आन्दोलन का मकसद बहुत बड़ा है,..और वक़्त उतना ही कम...मकसद है जड़ तक जा चुके भ्रष्टाचार को ख़त्म करना...हर मोर्चे पर लड़ना होगा....इस बात को झुठलाया नही जा सकता कि युवा वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सा फेसबुक,ट्विटर से जुड़ा है....आप उस युवा को अपनी बात सुना रहे हैं,वो एक युवा आपकी बात को घर के बाकी दस सदस्यों तक पहुंचाएगा...कारवा बढ़ता जायेगा....अगर सोशल मीडिया इतना ही बेकार साधन होता ,तो सरकारी ज़मात इसका गला घोंटने पर आमादा नही होती !
आन्दोलन में जाते रहने के साथ सोशल मीडिया में जगह संभाली  ! अरविन्द ने कभी किसी को चैन से नही बैठने दिया, आये दिन कोई न कोई आन्दोलन,घेराव,कभी उनके उपवास ,अनशन !उनकी सेहत की फ़िक्र ने दिमाग को आराम नही  दिया  !जैसे ही आन्दोलन से अलग पार्टी बनी  , हम पूरी तरह से मीडिया से गायब हो गए ! मर्ज़ी जितने बड़े पोलखोल हो,खुलासा हो, मीडिया का ध्यान इन पर नही गया ! सब अम्बानी खुलासे के बाद ऊसकी  भेजी   एक चिट्ठी से हुआ ! लोकतंत्र का चौथा खम्बा ,पैसे और बिकाऊपन  की दीमक से जर्जर हो गया  ! सारा भार सोशल मीडिया पर था ! दिन रात की मेहनत शुरू हुई ! टीमें बनी ,पर वर्चुअल दुनिया में एक दुसरे को  समझ पाना बेहद मुश्किल ! लड़ाई झगडे , गलतफहमियां , सबने काम और मुश्किल किया ! लेकिन इस मोर्चे पर हारना मतलब बहुत बड़ी  हार ! जब आन्दोलन का पेज ले लिया गया , आईएसी नाम छीन गया , तो पास कुछ पहचान नही बची ! बस हम थे, और साथ थे अनगिनत हौसले ! क्रांतिकारियों का एक ऐसा जत्था देश में पैदा हो  गया था , जो सरकार को नाकों चने चबवा रहा था ! 6 लाख के पेज को छोड़ने के बाद फिर नयी   शुरुआत की ! आईएसी से अलग पहचान बनायी ! भाजपा और कांग्रेस के सोशल मीडिया को जहाँ पैसों पर रखे टट्टू अनाप शनाप पैसा लगाकर चला रहे थे, वहीँ  पार्टी के लिए इस मोर्चे पर भी निस्वार्थ कार्यकर्ता लगे हुए हैं !



अब इस आन्दोलन ने मुझे क्या दिया ? देश,देश भक्ति से हटा दो , तो एक ऐसा जूनून पाल लिया जिसे , दुनिया अरविन्द केजरीवाल के नाम से जानती है ! "जितनी शिद्दत से मैंने तुम्हे पाने की कोशिश की है,उतनी शिद्दत से सबने मुझे चिढाने की कोशिश की है" ! ;) दिन रात , सुबह शाम , हर सेकंड, हर पल अगर एक ख्याल दिमाग से नही गया , तो बस यही ! एक वो थी मीरा,एक मैं बन गयी ! एक झलक देखने के लिए क्या क्या नही किया ! एक मुस्कुराहट को पाने के लिए हदें पार कर दी ! मुझे पता है इस पागलपन का कोई अंजाम नही है ! वो आसमान है, और मैं धरती ! पर फिर भी मेरे ऊपर उसका साया पड़ना लाजिमी है ! मैं जितना मर्ज़ी चाह लूं, अछूती नही रह पाती ! मैं ऐसी ही रहूंगी ! ये जूनून हर दिन हर पल अब सिर्फ बढ़ेगा, कम नही होगा ! हज़ार रायचंद आये और गए कि ये मत कहो , वो मत कहो , ऐसा मत लिखो, वैसा मत लिखो ,पर सब हार कर चलते बने ! अब भी यही कहूँगी, नाकाम कोशिश नही  करनी चाहिए !  मेरी ख्वाहिशें , मेरी हसरतें , मेरी चाहते , सिर्फ मेरी है ! किसी और की नही , जो इस जूनून में काबिज है, उसकी भी नही और जो उस जूनून के दायरे में हैं, वो भी नही ! 


आगे आगे देखना है,क्या खोती हूँ क्या पाती हूँ ! पर अब डर नही लगता ! यहाँ मैंने खुद को जिया है ! यहाँ मैंने खुद को पाया है ! भविष्य को दाव पर लगाकर भले ही कुछ लोगों को ठेस पहुंची हो , पर खुद से नज़र मिला सकने की ख़ुशी है ही कुछ और !





 

7 comments:

  1. "जितनी शिद्दत से मैंने तुम्हे पाने की कोशिश की है,उतनी शिद्दत से सबने मुझे चिढाने की कोशिश की है" ! ;) very nice Sharma ji :)Kuch to log kahenge logo ka kaam hai kahna..........

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  2. Very True..
    One day..it will be true!

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  3. I am following you since your last 2-3 posts...became fan of your patriotism.....i dont have words for THE ARVIND KEJRIWAL...whenever i met him..i touched his feet...he is my idol...and i can say..India jaldi badlega.. :)

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  4. once again sharma ji excellent written up.Aur aapka junun he jo logo ko aapse jod raha hai..

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  5. अब भी यही कहूँगी, नाकाम कोशिश नही करनी चाहिए ! मेरी ख्वाहिशें , मेरी हसरतें , मेरी चाहते , सिर्फ मेरी है ! किसी और की नही , जो इस जूनून में काबिज है, उसकी भी नही और जो उस जूनून के दायरे में हैं, वो भी नही !



    लाजबाव।

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