Sunday 26 May 2013

कच्ची उम्र की अनसुलझी कल्पना


भावनाएं बहते पानी की तरह हैं ! एक बार किनारे से छूटी , तो मर्ज़ी जितने बाँध बना लो, इनका बहाव सब साथ ले जाता हुआ आगे बढ़ जाता है ! मेरी कल्पना की उड़ान हमेशा से ही गगन चुम्बी रही ! जिस उम्र में रिश्ते , बंधन , आत्मीयता , जुड़ाव की बारहखड़ी पता नही होती , मैंने इनसे मिलने वाले सुख दुःख  की  कल्पना करना सीख लिया ! और  मैंने कलम उठा ली ! पन्नों पर इश्क की लहरें समुद्र  से भी तेज़ गोते लगाती हैं !
 
 
  मैं नौवीं क्लास में थी !  एक दम आज़ाद मनमौजी पंछी, वो तो आज भी  हूँ ! पता नही दिल क्यों मुझ से पहले बड़ा होना चाह रहा था ! डायरी उठायी , पेन चलाया , और न जाने किसकी अधूरी मोहब्बत पन्नों पर बिखर गयी !  ये कम से कम 13 साल पहले लिखा था, बहुत छोटी उम्र में , बिना इसे जीए, पर हाँ महसूस किया था !
 
 
"जब मैं उनसे पहली बार मिली,एक सुनसान कमरे में वो अकेले बैठे थे,
सारा ज़माना साथ छोड़ बैठा था.....जैसे ही मैंने अन्दर जाकर कंधे पर हाथ रखा,
बोले- अच्छा हुआ तुम आ गयी,यहाँ तो खुद अपनी परछाई काटने को दौड़ रही है..
कितनी तन्हाई है यहाँ...
 
 
 जब मैं उनसे दूसरी बार मिली तो अकेली अधेरी राह पर अकेले चल रहे थे,..
मैंने जैसे ही हाथ थामा,..मुस्कुरा पड़े,...बोले एहसान तुम्हारा,जो साथ देने आई हो,
वरना कोई हाथ थामने को राज़ी ही नही था..सब मुह फेर चुके हैं....
 
 
तीसरी बार एक शानदार महफ़िल में कोने में चुप चाप खड़े थे,.हाथ में जाम
था ....जैसे ही मैंने उन्हें संभाला,जाम छलक गया...अरे वाह कितना शुक्रगुजार
हूँ तुम्हारा..इस महफ़िल सब पराये हैं,एक जाम अपना है,जो न गले से उतरता है,
न बरसता है...अब तुम्हारा नशा,इसकी गुलामी से आज़ाद करा देगा...
 
 
फिर मैं चौथी बार उनसे मिली,तो उन्ही की शादी थी.....मेरा परिचय
अपनी बीवी से कराया "और बोले,----------
 
"जानेमन इनसे मिलो,हमारी जान
पहचान की हैं,...चाँद मौकों पर मिले हैं इनसे....
<<<<<पहली मुलाक़ात जब हुई, हम
कुछ मुद्दा सुलझा रहे थे,बेवक्त आयीं और हमे डिस्टर्ब कर दिया  !
 
<<<<<<दूसरी बार जब मिली तो हम रास्ते पर कुछ अनमोल चीज़ तलाश रहे थे,आकर
ऐसा हिलाया वो तो क्या मिलती,जो था पास,वो भी गिरवा दिया !
 
<<<<<<अगली मुलाक़ात में हम एक शानदार नवाबी महफ़िल में थे,हाथ में शानदार जाम था,
ऐसा फटका मारा,की जाम गिरा दिया...अमा क्या बेईज्ज़ती की थी हमारी !
 
<<<<<<अब चौथी बार आज मिल रही है,ज़रा संभल कर रहना,कहीं पहली मुलाक़ात
में तुम्हे हमसे अलग न कर दे,इन्हें "जुदा" करने की बहुत बुरी आदत है !

3 comments:

  1. my god .......09th class me - katanak thinking

    great. likti raho

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  2. nice........... aise hi likhti raho...

    मगर कोशिश रहे की आपकी पोस्ट आपकी पहचान की वज़ह से नहीं, अपनी स्पष्टवादिता की वज़ह से पढ़ी जाए.... :)

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  3. Sharma ji bhut khub likhti hain aap
    :)

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