Sunday 26 May 2013

मैं ज्योति सिंह पांडे , दामिनी नही हूँ

मैं  दामिनी  !  मैं दामिनी हूँ ? पर  कैसे ?  किसने रखा मेरा ये नाम ? मेरे माँ  पापा ने ?  या  मेरे भाइयों ने  ?  या  उन  लोगों ने जिन्होंने  मुझे  गोद  में खिलाया है ,  जिनके साथ खेलकर मैं  बड़ी  हुई हूँ   ! जिनके साथ मैं झूला झूली  उन सहेलियों ने , मेरे  सारे  दोस्तों ने  जिनके साथ मैं  सड़क किनारे गोल गप्पे खा रही  हूँ , या फिल्म देखने जा रही  हूँ ! नही !  इसका जवाब मेरे पास अभी है नही, मैं जानती नही ,.. शायद वक़्त कुछ सोच कर बैठा है ! शायद मेरे नए नाम के पीछे कुछ ऐसी कहानी हो जो मुझे अभी नही पता न हो !  इस सवाल का जवाब  मिलकर  ढूंढते हैं !

मेरे पिता किसान है !  गरीब हैं !  इनकी हैसियत नही कि अपनी आँखों से कोई सपना देख सके , इसलिए  इन्होने  अपने  सपनो को  सहेज कर  मेरे  भीतर  भरा है  ! इन्होने अपनी ज़मीन बेच कर  मुझे  इतना पढाया  है , कि  मैं  सिर उठाकर  जी सकूं ! इन्होने मेरे  जीवन में रौशनी भर कर  अपने  जीवन  को  अंधेरों  से  बचाने  के  लिए  मेरा  नाम "ज्योति"  रखा !  मैं  "ज्योति सिंह पाण्डे" !  बी एस सी  कर रही हूँ !  माँ बाप , छोटे भाई , सब गाँव में रहते हैं ! जिंदगी सुकून में है ! एक दम आराम !  आम जिंदगी जैसी होती है, वैसी ही मेरी   है ! दिल्ली  में  रह  रही  हूँ !  दरअसल  जहाँ  मेरा  गाँव  हैं , वहां  कुछ ज्यादा  है  नही, अब माँ बाप  चाहते हैं की  मैं  खूब पढ़ लिख जाऊं, और बाद  में अपने भाइयों का भविष्य भी बनाऊं !  फिर मेरे  ऊपर  बहुत  सी  ज़िम्मेदारी है !  उफ़ ! दिल्ली  सपनो का शहर है !   हर राज्य कहीं यूपी वालों का है, कहीं  बिहारियों का ,  कहीं मराठियों का , कहीं  तमिल का  !  एक  दिल्ली  ही है , जो  सबका संगम है !   ये  बाहें  पसारकर  सबका  स्वागत करती  है ! सबसे आत्मीयता से मिलती  है !कुछ ख़ास है यहाँ , अपनापन सा ! कहते  हैं  ये  सुरक्षित  नही  है !  मुझे ऐसा नही लगता ! "सुरक्षित  असुरक्षित जगह नही , लोग  होते  हैं , माहौल होता है ! एक सड़क किसी को खा नही सकती  !  एक  शहर  किसी को  निगल  नही  सकता"  ! 

अभी  मेरे  पेपर हैं कल ही ! पढाई लिखाई  सब  ट्रैक पर है !  पेपर  ठीक ठाक  निकल जाएं , फिर  नौकरी  ढूंढनी होगी,  मैं  बोझ  नही  बनना  चाहती  माँ  बाप  पर ! कम  से  कम  इतना कर लूं कि  पढ़  लूं  और  अपना  खर्चा  भी  निकाल  लूं ! 
तनाव सा चल रहा है !  आज आखिरी पेपर  है ! सब ठीक ठाक है, फिर भी न जाने क्यों , मन कुछ बेचैन है , कोई अनजान सी आहट साँसों से टकरा रही है  ! आज पेपर  दे लूं , फिर बाहर जाने का प्रोग्राम बनाउंगी !
आह ! अब चैन की सांस आई !  आज पेपर  पूरे  हुए  ! अब  दिमाग को ज़रा आराम चाहिए ! थोडा सा चेंज  , अरुण को फ़ोन करती हूँ ! शाम तो हो ही गयी ! रात को फिल्म देखने जाने से बेहतर क्या हो सकता है !
<<वसंत विहार बस स्टॉप>>
यार ये ऑटो क्यों नही मिलता !  इन ऑटो वालों को तो माफिया होना चाहिए, वाजिब दाम मांगने  की बजाय  सीधे सीधे गैर वाजिब वसूली करते हैं ! अब और कितना खड़ा रहना पड़ेगा स्टॉप पर , बस भी नही आ रही ! दिल्ली को  हाई फाई बनाने की बात खूब करा लो नेताओं से, पर ये डीटीसी की शक्ल तो नसीब नही होती !
  अरे बस आ गयी ,पर चार्टर्ड है ! इसी में चलें क्या ? चलो आ जाओ , वो बुला भी रहा है ! रात हो  गयी , और कब तक इंतज़ार करेंगे ,चलते हैं !
एक बस, एक भी सवारी नही ! और ड्राईवर के अलावा,एक कंडक्टर, और तीन सहायक  ! दीदी टिकट लो ! अरे माफ़ करना गलती से हाथ छू गया !
कोई बात नही भैया !
"इसके आगे दामिनी, जिंदगी के सबसे बुरे ,खौफनाक पलों को जीने वाली थी ! अगले 2 घंटे, उसके जिंदा शरीर को गिद्ध की तरह जैसे  नोचा खसोटा गया, उसने दिल्ली को नही देश को ज़ार ज़ार रुलाया ! दामीनी के साथ कंडक्टर ने बदतमीजी करना शुरू किया ! वैसे ही उसके दोस्त ने उसका बचाव किया ! कितनी बड़ी मुसीबत सामने मुंह खोले खड़ी थी , उसका अंदाज़ा अगले ही पल दोनों को हो गया ! उसके दोस्त को मार मार कर ,पीछे डाल दिया !
अब दामिनी अकेली 5 दरिंदों के आगे घिरी थी ! बलात्कार का मत्त्लब है किसी के साथ उसकी मर्ज़ी के बिना सम्बन्ध बनाना , मतलब "बलात " .अर्थात बल के आधार पर ! दामिनी  का सिर्फ बलात्कार नही हुआ था ! उसके कतरे कतरे को लड़की होने की सजा  दी गई थी !
दामिनी को पहले बहुत ही बुरी तरह से मारा पीटा गया ! उसके सर को बस की ज़मीन पर पटक पटक कर मारा ! अधमरा करने के बाद , अब एक एक ने बारी बारी से उसके साथ बलात्कार किया !  बलात्कार ,सिर्फ यौन सम्बन्ध बनाने तक नही था ! दांतों से सिर से पैरों तक जगह जगह काटा गया ! एक एक ने न जाने कितनी कितनी बार दामिनी  से बलात्कार किया !
दामिनी ने इस बीच हिम्मत नही हारी थी ! उसने आत्मसम्मान  के आगे जान को अहमियत नही दी थी ! हो सकता है दामिनी सब कुछ चुपचाप सह लेती ,होने देती जो हो रहा था , तो उसकी जान नही जाती ,पर जिनके खून में संघर्ष में हो, वो हालातों को जीतने नही देते  ! पुरुष के अहम् को सबसे ज्यादा चोट शायद तभी पहुँचती है , जब औरत ,बगावत करने लगे ! जब वो उसके अहम् ,उसकी मर्ज़ी को न जीतने दे ! ऐसे वक़्त आदमी कुचलने पर उतर जाता है ! वही दामिनी के साथ हुआ ! उसके संघर्ष ने , उसकी हिम्मत ने उनके अहम् को चोट दी थी, तो अब बारी थी आखिरी और सबसे दुर्दांत चोट !
बस में पहिये बदलने के लिए एक मोटी सी लोहे की रॉड होती है ! जो बांस के जितनी मोटी  होती है ! दामिनी के योनी में लोहे की यही रॉड पूरे फ़ोर्स के साथ अन्दर तक घुसाई गयी और फिर उसे  ताकत के साथ जोर जोर से घुमाया गया , जिससे उसकी आंतें उसमे लिपट गयी ! फिर उस रॉड को एक दम से खींच कर बाहर निकाला , और साथ में आंतें भी बाहर आ गयी !
इसके बाद दामिनी को बिना कपड़ों के यूँ ही अपने दोस्त के साथ चलती बस से नीचे फेंक दिया ! दर्द से कराहता वो है, जो जिंदा हो, दामिनी मौत से भी ज्यादा मुर्दा हालत में थी ! दर्द भी अगर दर्द की इन्तेहा से आगे बढ़ जाए, तो महसूस होना बंद हो जाता है ! एक लड़की होने के नाते इतना जानती हूँ , लड़की जितने मर्ज़ी दर्द में हो, आबरू से कपड़ा हटना , गंवारा नही होता ! 
पूरे आढे घंटे बीच सड़क पर दामिनी खुले शरीर से, खून में लथपथ , बाहर निकले मॉस के लोथड़ के साथ पड़ी रही ! दिल्ली के दिलवाले , गाड़ियों में बैठे पास से गुज़र रहे थे , शीशा नीचे उतारते , नाक मुंह  सिकोड़ते, थोड़ी हाय तौबा करते और हॉर्न बजाते हुए , साइड से निकल जाते ! दामिनी मदद मांग नही सकती थी ! इसलिए दिल्ली वालों ने मदद दी भी नही  !   रास्ते में जब कुत्ता घायल पड़ा होता है, तो मुन्सिपलिटी की गाड़ी उसे अस्पताल भेज देती है ! इस  देश में एक लड़की की किस्मत उतनी अच्छी भी नही होती ! आश्चर्य नही होता अगर उन 25 मिनट में दामिनी और किसी के हाथों बलात्कार की शिकार हो जाती !

दामिनी जब अस्पताल पहुंची, तो दर्द की  गहरी बेहोशी में भी उसकी अलकों से आंसू लुढ़क रहे थे ! डॉक्टर सिहर उठे , उसे देखकर ! बाहर तो बाहर , अन्दर के अंग भी सब बाहर थे ! खून कहाँ से कैसे रोका जाए , कुछ पता नही था ! उन दिनों  दामिनी क्यों जी ?  शायद पहले ही दिन सब जानते थे , कि उसका बच पाना मुमकिन नही था ! पर एक अकेली लड़की दिल्ली तो दिल्ली पूरे देश को शर्मिंदगी में डुबो गयी ! सबकी रातों की नींद उड़ गयी  ! लड़के लड़की बूढ़े बच्चे अगली सुबह से सड़कों  पर आ गए दामिनी के लिए इन्साफ मांगने ! लोग धरने में बैठे रोते रहते ! माँ बाप की आँखों से नींदें उड़ गयी, सबको अपनी बेटियों में दामिनी दिख रही थी !

दामिनी की जीने की इच्छा थी ! वो हर दिन खुद के लिए लड़ रही थी ! उसे न बचा पाना हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी नाकामी थी ! उसे सिंगापुर जाने देना हमारी सबसे भूल थी ! हम उसे मौत के मुह में छोड़ आये थे ! क्या सोचा होगा  , दामिनी  ने आखिरी वक्त में ? दुसरे देश के किसी आस्पताल में पलंग पर पड़ा उसका थका शरीर अपने अच्छे दिन याद कर रहा होगा या जिंदगी के आखिरी दर्दनाक पल ! उसे  हम सबसे  कितनी शिकायत होगी ! हम जो उसके नंगे शरीर को सड़क पर आधा घंटे हज़ार नज़रों के हवाले कर आये, हम जो उसे अस्पताल न पहुंचा कर उसके दर्द को जल्दी से जल्दी आराम नही दे पाए, हम जो उसके लिए लड़ नही पाए ! हमारी नाकामी है कि एक दामिनी को खोने के बाद हमारे आगे ही गुड़िया बन गयी !

शायद उसने कुछ सवालों के जवाब मांगे हों, शायद हर लड़की इन सवालों के  जवाब मांगती  है ! क्यों कुछ आदमियों को दर्द में लिपटी चीखें सुकून देती हैं ? क्यों औरत का छटपटाना,गिडगिडाना मर्द सीना चौड़ा करता है ? क्यों बहता खून सुकून देता है ? क्यों हाड़ मास एक आत्मा से ऊपर हो जाते हैं ?

<<<मैं दामिनी>>>>>>>>" नही हूँ " !  ये नाम मुझे मेरे माँ बाप ने नही दिया , ये नाम मुझे मेरे साथ बड़े हुए संगी साथियों ने नही दिया , ये नाम मुझे मेरे साथ हंसी ठिठोली करने वाले दोस्तों ने नही दिया ! ये नाम मुझे मेरी गोद में खेले भाइयों  ने नही दिया ! ये नाम आपने दिया है ! @आपने  जिन्होंने मुझे सड़क पर लाश की तरह छोड़ दिया ! @आपने  जिन्होंने दुपट्टा नही, तो कफ़न भी मुझ पर नही ढका , @आपने , जो मेरी चीखों से नही जागे , @आपने  जिन्होंने मुझे देश में जीने नही दिया , @आपने  जिन्होंने मुझे देश में मरने भी नही दिया @आपने  , जिन्होंने मुझे दामिनी बना दिया !

मैं "ज्योति"............................................................ अब भी जल रही हूँ !
   
 
 
  

15 comments:

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    1. सराहनीय लेख शब्दों मे "उसकी " चीत्कार सुनाई देती है ...........इतना दुखद है की ये लिखना अच्छा नहीं लगता की "बहुत अच्छा लिखा "

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  2. जिन्दगी को जीना अब उसे बोझ लगने लगा होगा
    मरहम ही अब उसे चोट लगने लगा होगा
    सोचा होगा उसने यहाँ बहुत राजनीती है मेरे जिन्दा रहने में
    जिन्दगी से ही उसका भरोसा उठने लगा होगा
    छोड़ दिया होगा उसने जिन्दगी की राह में चलना उसने
    उसको खुद का जिन्दा रहने से ज्यादा खामोश रहना ही सही लगा होगा.

    मैं "ज्योति"............................................. अब भी जल रही हूँ !

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  3. " आढे घंटे बीच सड़क पर दामिनी खुले शरीर से, खून में लथपथ , बाहर निकले मॉस के लोथड़ के साथ पड़ी रही ! दिल्ली के दिलवाले , गाड़ियों में बैठे पास से गुज़र रहे थे , शीशा नीचे उतारते , नाक मुंह सिकोड़ते, थोड़ी हाय तौबा करते और हॉर्न बजाते हुए , साइड से निकल जाते ......"
    ..
    बेहद मार्मिक ... अब से यकीन नहीं होता की नरक मृत्यु के बाद दीखता है .. यह जिन्दा रहकर भी देखा जाता है .

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  4. It's really very painful and shameful for me and all of us who feel proud to be an Indian

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  5. the dark side of our growing india/bharat.......

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  6. Itna sab kuchh hone ke baad bhi hum logon ki ankhen nahin khuli hain. Mujhe lagta hai ki ye khulengi bhi nahin. Its one of the reasons that a lot of parents do not want the girl child and that is not the solution. Lekin unhen ab koi aur solution samajh bhi nahin ata aur agar ata.

    Kash aisi himmat wali ladki sabke ghar mein paida ho.

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  7. jo hua hum sab ne dekha aur mahessos bhi kiya, lekin khabhi ye nhi socha tha ki insaan itni gandi nigah se ladkiyon ko dekh skta hai, ledki hona ya ladka hona ye mayne nhi rkhta hai mayne rktha hai to insaniyat, Damini ek insaan thi, aur jin logon ne uske sath ye ghinauni harkat ki vo bhi insaan the, Sarm to is baat se ati hai ki ek insan dusre insan ke sath itni giri huyi hrkat kaise kar skta hai, sarm ati hai ku hum aise samaaj me rhte hain, jha ek insaan ki kadr nhi hai, kya yhi manvta hai?, kya yhi hum logo ne Man Baap Sikhate hain ? agar ek insan doosre insaan ki kdr ijjat nhi kr skta to usse behatr hai ki vo khud atm hatya kr le ye behtar hai.

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  8. उफ्फ्फ ...वही सिरहन फिर से दौड़ गई .....सिर्फ दर्द ही दर्द

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  9. दूर जाकर भी हम दूर जा ना सकेंगे ,
    कितना रोये हम बता ना सकेंगे ,
    गम इसका नहीं की आप मिल ना सकोगे ,
    दर्द इस बात का होगा की हम आपको भुला ना सकेंगे ।

    ज्योति जितना अंदर जाती गई उतना लगता है आत्मा को पकड़ कर अपनी मुठ्ठी में दबाती गई
    अब और कितना आत्मसात करूँ खुद को मेरी खुद की आत्मा ही मुझको नकारती गई

    क्या सिर्फ यहाँ पे लिखने से या यहाँ पे पढने से ही हल होगा इसका ?

    आज हम अपनी खुद की सृष्टि को ख़तम करने जा रहे है क्योँ कि जननी ही सृष्टी है और आज हम अपनी ही जननी को खाने लगे है!
    बड़े बेशरम हो कर अभी तक पढ़े जा रहे है चलो उठो और वादा करो पहल मै अपने से करूँगा तभी ये संभव है

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  10. मार्मिक ..... निशब्द

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  11. दामिनी का सिर्फ बलात्कार नही हुआ था उसके कतरे कतरे को लड़की होने की सजा दी गई थी..!

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