Sunday 16 June 2013

I am a proud daughter



बुढ़ापे की दहलीज़ पर कदम रखते ही....
मेरे घर का माहौल कुछ संगीन सा हो गया है.....
जहाँ परोसी जाती थी चुपड़ी रोटियां .....
वहां अब सब्जी में नमक भी कम हो गया है.......

जिन उँगलियों को कस कर पकड़ा था जिसने.........
उन हाथो को छुए अब एक ज़माना हो गया है....
तजुर्बा बढ़ गया है,बालो की फसल पक गयी है मेरी....
पर मेरा बेटा अचानक ज्यादा सयाना हो गया है.....

अब कमरे में उजाला नही रहता...
आँखें धुंधला गयी,या जीवन में अँधेरा घना हो गया है....
कपकपाते कदम ढूंढ नही पाते आसरा..
घर का सबसे पिछड़ा कोना,मेरा ठिकाना हो गया है...

पर मैं मायूस नही.अब भी एक उम्मीद बची है...
जिसे पाला था नाजों से,वो गुडिया अब भी सगी है....
अब तो त्योहारों पर उसी का इंतजार रहता है...
उसके छूने में अब भी पहले जैसा दुलार रहता है....

आज मुट्ठी में छुपाकर बताशे लायी है....
उसकी माँ जो ले गयी थी,वो मिठास वापिस लायी है....
बेटा बगल में रहकर भी अपना न हो सका....
और दुनिया कहती है,की बेटी "परायी " है..

Friday 7 June 2013

गर ये प्रेम दिवस है तो वो क्या था .....


"प्रेम दिवस"!!गर प्रेम दिवस है ये,
तो फिर वो तब क्या था बोलो,
जिस दिन मैंने आँखों में इक,
नन्हा सपना घोला था तब,जब,
तुम उन आँखों पर चुम्बन कर,
प्रेम की वर्षा जब करते थे,तब
बोलो,जब मैं कुछ सकुचाई तुमसे,
मिलने आई थी,तुम बैठे थे,लोग
बहुत घेरे थे ऐसे,जैसे वो ही हैं सब
अपने और मैं ही हूँ इक मात्र परायी।

गर ये प्रेम दिवस है तो बोलो वो क्या था,
जब मुट्ठी बांधे मैं बैठ गयी थी,और
रही थी पूछ यही,बोलो क्या है भीतर
इसके,एक नन्ही सी इच्छा बांधे,जो अपने
मन की मैं फिरती थी,क्या तुम इसको
धारण कर मांग में मेरी भर दोगे कुछ
वचन वो ऐसे ,जो नही मिले तो शरीर भले,
पर आत्मलींन मैं हो जाऊं तुममे,कुछ ऐसा कर दोगे !!

गर ये प्रेम दिवस है तो बोलो वो क्या था,
जब तुम बैठे थे पास मेरे और मैं दूर बहुत थी,
कुछ सोच सोच कर हैरान ऐसे,कैसे तुम हो
सकते हो सबके ,जब मैं करती हूँ प्रेम बहुत,
चरणों की धूल से श्रृंगार पहर हर चार,तो फिर
क्यों रहती हूँ,चौखट पर दिन रात,बात यूँ
खुद से ही बतलाती थी!!

गर यह प्रेम दिवस है,तो बोलो वो क्या होगा,
जब तुम बरसों की तृष्णा करने शांत,आओगे
द्वार मेरे,और मैं हो जाउंगी तृप्त,कि बस न
एक जनम और लुंगी,इस दुनिया में आकर
फिर न दर्द बिछोह,झेल,दुर्दत दशा कर लुंगी
न फिर अपनी !!
यही दिवस होगा प्रेम का इक बार,अगर तुम
जलती सी चिंगारी मन में दो अपने अधरों से
टेक बुझा दोगे जिस दिन,मैं भी कह कह सबको
बतला दूंगी,ये है प्रेम दिवस तो आज *

Wednesday 5 June 2013

क्यूंकि इसकी हैसियत किलकारी मारने की भी नही है





मेरे पेट में होने की खबर से,घर में मातम सा पसर जाता है....
जो जननी है जग की,खुद उसे ही जन्मने नही दिया जाता है.....
माँ के हंसी का अंदाज़,क्यों अचानक बदल जाता है???
मेरी पहचान करने का पाप,जब वक़्त से पहले किया जाता है.....

नन्ही सुनती सब है,कुछ सहमी सहमी सी भीतर....
न जाने क्यों सब रूठे हैं,मेरी आने की खबर सुनकर....

जब माँ ने पेट पर हाथ फेरा,तो क्या कहना चाहती थी??
मुझे प्यार से सहलाती थी,या सदा के लिए सुलाती थी??
पापा भी तो रोज़ कान में,मेरी धडकन सुनते थे...
फिर वो मेरे नही तो,आखिर किसके सपने बुनते थे.....

कल रात को माँ ने शायद,मीठी रोटी भी नही खायी थी!!!
तभी तो मेरे हिस्से की चीनी,मुह में नही आई थी....
अंदर हूँ,लाचार हूँ,कुछ कर तो नही सकती....
भूखे पेट सारी रात,सो भी तो नही सकती.....

क्यों गुस्सा हैं सब मुझसे इतना..
क्या मैं ज्यादा कुछ ले जाउंगी???
इतनी नफरत पाकर मैं....
माँ के अन्दर ही मर जाउंगी
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यहाँ बहुत अँधेरा है ! अब मैं माँ के गर्भ में आ गयी हूँ ! शायद यहाँ मैं सबसे ज्यादा सुरक्षित हूँ ! जगह कम है ,पर मैं यहाँ मालिक की तरह रह सकती हूँ ! माँ जो खाती है, मुझे भी खिलाती है ! कभी मीठा , कभी तीखा , कभी खट्टा , कभी नमकीन ! मेरे मुह में दिन में एक बार चीनी ज़रूर आती है ! शायद माँ मेरे होने की खुशी में !

दिन में कई बार माँ मुझे सहलाती है, हाथ फेरती है , कभी मैं चुपचाप सुकड कर एहसास लेती हूँ, कभी शरारत में पैर मारती हूँ ! मुझे यहाँ सब सुनाई देता है ! आज माँ को डॉक्टर के पास जाना है ! शायद मुझे देखने ! पहली बार देखेगी माँ , पापा, दादी भी ! कितने खुश होंगे सब !

मैं लड़की हूँ ! दादी रोते हुए बता रही है ! पर रोते हुए क्यों? घर में अजीब अजीब सी आवाजें आ रही हैं ! सब बदला सा लग रहा है ! न माँ ने एक बार भी मुझे सहलाया, न हाथ फेरा ! आज मैं भूखी हूँ, एक दम ! न माँ ने भीगी रोटी खायी, न चीनी !
बहुत भूख लगी है ! पर खुद खा नही सकती ! अब बहुत दिन हुए, सिर्फ सूखे सूखे से रोटी के टुकड़े ही खा पाती हूँ !

लड़की हुई है ! इसका नाम खुद ही रख दो ! क्या पंडित को बुलाना , क्या सत्यनारायण की कथा करवाना ,वंश बढ़ता, लड़का होता, खानदान का नाम होता ,पर कुंडली मारकर हमारी राशि में आ गयी ! यही कुछ हाल होता है अधिकतर घरों में हमारे देश में लड़की के होने के बाद ! कही तो लड़की राजकुमारी सी पलती हैं , कहीं अभिशाप सी ढोही जाती हैं !

कहीं किसी छोटे या बड़े दवाखाने के भीतर कचरे के डिब्बे में आधे या साबुत भ्रूण के रूप में,कभी चौराहे पर रखे कूड़ेदान में जानवर की खायी या नोची हुई पोटली  सी, कभी ससुराल की रसोई में अधजली या फूंकी हुई जिंदा लाश,कभी घर की चारदीवारी में चाचा, मामा, बाप ,भाई के खेलने का खिलौना बनकर ,...कभी सड़क, बस, ट्रेन,दफ्तर में हवस की शिकार बन कर ,... हज़ारों दामिनी रोज़ जीने के लिए संघर्ष कर रही हैं ,..फर्क इतना है की कभी पूरा देश उनकी आवाज़ बन जाता है,तो कभी वो खुद भी अपने लिए आवाज़ नही उठाती ,.....समाज को बेहतर बनना है ,तो शुरुआत भ्रूण की रक्षा से करनी होगी ,........क्यूंकि इसकी हैसियत किलकारी मारने की भी नही है