Thursday 30 May 2013

मीरा,शबरी के हिस्से तपस्या आती है,हरि को हमेशा राधा,सिया ले जाती है


"मैं खामोश नदी बहती,तुम विस्तृत सागर जैसे,
 टेढ़ी मेढ़ी बहकर ही,कभी तो तुममे मिल जाउंगी"!


"मन मेरा जैसे गंगा,तुम इस पर बहते दीपक, 
अक्स तुम्हारा थामे मैं,कल कल बहती जाउंगी"!
 

"तुम गुजरो जिस पथ से जिस दिन,ध्यान रहे,वहीँ मिलूंगी,
तुम से पहले ही राहों में ,पुष्प मैं बन बिछ जाउंगी" !
 

"नही छुए ऊँगली को ऊँगली,फिर भी पूरी हो जाउंगी!!
 तुम देखोगे एक नज़र मुझे,मैं सारे तीरथ पा जाउंगी"!!
 

"मन मेरा पंचवटी,तुम राम मेरे इस जीवन के, 
बिना मिले बनवास मुझे,मैं बैरागन बन जाउंगी"!!
 

"पाँव पखारूँ 4 पहर,पलकों से पोंछूं घाव सभी, 
मैं पट्टी बन कर बाहों की,चरणों में बंध जाउंगी"!!


 <<<<मेरे मंदिर के भगवान न जाने कितनी रिश्वतों को डकार कर बैठे हैं ! 11 , 21 ,31 , 51 , .... का प्रसाद चढ़ाउंगी ,पर अगले जनम में "सुनीता केजरीवाल " बना देना , अगर वो भी नही तो "बिभव" ही बना देना , वरना अरविन्द का चश्मा , शुगर की गोली,  डाइट कोक, नीली वेगनार की आगे की सीट, मूछें, कौशाम्बी ऑफिस की वो वाली कुर्सी, दाल वाली नमकीन ही बना देना ! "सुनीता केजरीवाल"  के इतने विकल्प दिए हैं , क्यूंकि हम तो जाने ही विकल्प के लिए जाते हैं !

रामलीला मैदान से वापिस आकर जब अखबार में "अरविन्द" की फोटो ढूंढनी शुरू की, और उनकी फोटो काटकर पलंग पर उल्टा लेटकर देखनी शुरू की, तो किसको क्या कहाँ पता था, कि ये बात इतनी दूर तलक जायेगी !

पर कहानी तो शुरू हो गयी ! शाहिद कपूर शहीद हो गया ,सलमान का साल निकल गया, अब तो सपनो में एक ही हीरो बिना टोल टैक्स आ जा सकता था ! मेरी किताबों के पन्ने उलटो तो अब भी कहीं न कहीं अरविन्द का चेहरा दिख ही जाएगा !

जो शायर , जो कविता , वक़्त की परतों में दफन हो चुकी थी, उसे ग़ज़ल मिल गयी ! अब तो निगाहें लिखने लगी और तमन्नाएं उड़ने लगी !

जब पलंग के सिराहने पर वो फोटो लगाई , तो आप क्या जाने अरमान कौन से आसमान पर थे ! पुरानी प्रेमिकाएं जैसे शरमाया करती हैं, वो मेरा हाल था ,, और उन प्रेमिकाओं के पिता जितने बड़े दुश्मन साबित होते थे, उससे कम मेरे पापा नही थे ! भाड़े के टट्टुओं का काम 5 साल की भतीजी ने किया ! जब एक दिन इंस्टिट्यूट गयी, तो वो फोटो गायब कर दी !  पर इकतरफा इश्क कहाँ मरा करता है ! लाख पहरे लगा लो, मोहब्बत झरोखे में से उड़ जाती है जहाँ नापने ! पलंग से तस्वीर हटी,  तो आँखों में बस गयी !  जैसे इच्छाधारी  टार्गेट आँखों में बसा लेती है, मैं एक दम फोकस हूँ , अपने टार्गेट पर !

कभी  कभी तो यहाँ तक मन किया, कि खुद का नाम "भ्रष्टाचार" रख लूं ! कम से  कम अरविन्द की  जुबां पर हर वक़्त रहेगा तो, पर फिर ख्याल आया कि इसे तो वो दूर करना चाह रहे हैं, मैं चंचल ही ठीक हूँ !

इतनी बार मिली हूँ, पर उँगलियों पर गिन सकती हूँ  जितने शब्द बोले हैं अरविन्द ने मुझसे और मैंने अरविन्द से ! मुझे उनसे बात करने का जूनून नही है,  उनकी नज़रों के आस पास रहने की ख्वाहिश भी नही है ! मैं पीछे नही भागती ! एक बार जुलाई अनशन के वक़्त जब अरविन्द सबसे मिलने आये , तो अनशनकारियों में अकेली थी ,जो उठकर नही गयी ! लोगों ने कहा घमंड है, अकड़ है !

पर ऐसा कुछ नही था !  मेरी पहचान ये थी ही नही ! मुझे जनवाना नही था, जानना था !  मैं तो ये  हूँ , जो दिख रही हूँ ! जो अब हूँ ! मेरे लिए एक मुस्कराहट हज़ार मुलाकातों से बढ़कर  है !  मैं बंद कमरे में बैठ कर , अरसे तक अकेली उनके बारे में सोच कर गुज़ार सकती हूँ  !  मुझे दीवानगी दिखाने  के लिए कुछ अलग हटकर करने  की  जरुरत नही है ,  ये चाहत  ही मेरी शख्सियत बन  गयी !

एक रात नही गुजरी  जब इन्ही का सपना न आया हो ! वो अलग बात है , उन रात में मैं सोयी नही ! जब मैं कोई शायरी ,  कोई कविता , कोई इज़हार लिखती हूँ , दुनिया एक दम फ़िल्मी रिश्तेदारों की तरह आ ., आउच,..उफ़,..करने आ जाती है ! कोई दलील देता है , कि अरविन्द बुरा मान जायेंगे , कोई कहता है लोग क्या कहेंगे , कोई कहता है घर में माँ बाप नही है, कोई कहता है क्या बेवकूफी है !
मैं पहले तो इन  सलाहों का जवाब ही नही देती  ! आज इस ब्लॉग में दे रही हूँ , दोबारा मत पूछना , न कहना !

<<<इन्द्रधनुष आसमान में है, सबको देखने का हक है ,उस  पर जाने के सपने देखने का हक है , मेरे लिए ये  यही इन्द्रधनुष है ! सतरंगी ! मनमोहक, आकर्षक, स्वप्न सरीखे !  >>>

<<<सूरज आसमान में है ! क्या सुबह अकेली उस पर दावा करेगी? आसमान का कॉपीराइट है उसकी रौशनी पर ? मेरी यही धूप है ये  , यही उजाला , यही तपिश !>>>

 <<<बादल बरसते हैं, भिगोते हैं , ठंडक देते हैं ! मेरे  लिए  वो यही  सीली सी  , अलसाई सी, कुछ जागी कुछ सोयी सी , बरसात की इक रात है ये  ! >>>

<<< कविता है कोई, उसकी साज़ इसी एक नाम से सजती है, उसकी धुन बस यही एक नाम गाती   है , क्या लिखना छोड़ दूं, क्या गाना छोड़ दूं , क्या साज़ पर थिरकना छोड़ दूं ? >>>

ये दिखावा तो हो नही सकता , क्यूंकि  बदले में कुछ मिलने की शर्त तो हो नही सकती ! जब पत्थर की मूर्ति पूजा अपराध नही, उस पर सजा नही, जेल नही, कैद नही, तो प्रेम पूजा क्या आतंकवाद फैलाती है ! बताओ मेरी चाहत में कहाँ नक्सल वाद की बू है ! किस को शहादत दी , सिवाय खुद के !

अब भैया रपट लिखाय दो, के गिरफतार कराय दो, के दरोगा से मिलवाय दो, ई का तो कछु होने से रहा !





Tuesday 28 May 2013

आन्दोलन - मैंने क्या खोया,क्या पाया

जिंदगी जी रही थी ! एक दम मस्त ! कोई टेंशन नही, कोई ड्रामा नही , सब एक दम बढ़िया ! न देश में कोई बुराई दिखती थी, न सरकार में ! और इससे बड़ी बात क्या हो सकती है , कि "राहुल गाँधी भी अच्छा लगता था" ! उफ़ ! खैर !
भाजपा एक दम मासूम सी पार्टी लगती थी , जो बेचारी सी कांग्रेस से जीत नही पा रही थी ! दया आती थी ! लोगों पर गुस्सा आता था जो इसको जीता नही पा रहे थे ! अटल जी के टाइम से भाजपा से लगाव था ! जैसे आज कुछ लोग सिर्फ मोदी की वजह से भाजपा को मानते हैं , वरना कब के तिलांजली दे देते, वैसे ही मैं वाजपेयी जी  की वजह से भजपा को बहुत मानती थी !
घूमना फिरना , मूवी , मटर गश्ती , शॉपिंग , ऐश में सब कुछ ! घोटाले के नाम पर तो मुझे याद भी नही ,कि मेरे चेहरे पर कभी कोई शिकन भी आई हो ! पता ही नही  था ,घोटाले जैसा कुछ होता भी है देश में !  और होता भी तो , अंदाज़ यही था" कुछ नही हो  सकता इस देश का"  ! यही सोच कर सब कुछ एक दम पटरी पर था !
तभी एक भूचाल आया ,और सब कुछ उड़ा ले गया ! पर कुछ भूचाल अच्छे होते हैं ! 2 साल पहले जनलोकपाल आन्दोँलंन ने सबकी तरह , मेरी  जिंदगी भी बदल दी ! अन्ना के अनशन के वक़्त मैं वहां सिर्फ दर्शक बनकर गयी थी !  सच कहूँ तो  मुझे मालुम भी नही था ,कि जन्लोकपाल कानून है क्या,इसकी मांगे क्या हैं , और ये मिलेगा  भी या नही ! मेले की तरह घूम आई पहले दिन तो ,पर मन में छिपा देश भक्ति का कीड़ा जो ,मैंने कभी नही देखा था , बेचैन हो उठा ! एक दिन , दो दिन ,तीन दिन ,ऐसे कर करके दिन बढे और साथ ही जज्बा भी !
आन्दोलन जब भी होते, मैं हमेशा गयी,  चाहे कितना भी जरूरी काम हो , पर आन्दोलान से जरूरी नही हो सकता था ! जिंदगी की प्राथमिकताएं बदलने लगी  ! जो पहले सबसे जरूरी था, वो अब जरूरत की लाइन में सबसे पीछे चला गया , और पहले नंबर पर देशभक्ति इतरा कर खडी सबको मानो मुंह चिढ़ा रही हो ! इंसान की फितरत है, जब हम बदलते हैं , तो हम उम्मीद करने लगते हैं कि हमसे जुड़े लोग इसे खुद ही समझ लें और खुद ही सहज हो जाएं ! हम उन्हें ये बदलाव स्वीकार करने का वक़्त भी नही देते ! यही हुआ ! पहले मम्मी जहाँ जिंदगी की सबसे बड़ी पिलर थी, उनके लिए ही वक़्त नही बचा ! पडोसी की तरह मिलना हो गया ! जिंदगी में जो शख्स सबसे कीमती था, वो खुद की जगह तलाश रहा था, पेपर देने की तारीख आकर निकल जाती ,और फॉर्म भरने की याद नही रहती ! रात भर जागना और दिन भर सोने के पल ढूंढना ! कुल मिलाकर सब इतना अवयास्थित हो गया था !
सब कहते ये आन्दोलन ज़मीनी नही,क्यूंकि ये तो फेसबुक और ट्विटर से चलता है,..लोग ज़मीं पर जाकर लोगो से बात नही करते....ये दलीलें इतनी मजबूती से रखी जाती और मिनट भर में आन्दोलन को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता....मेरा मानना इसे बिलकुल उलट था ...सोशल मीडिया या कहें किसी भी माध्यम को आप पूर्ण रूप से नकार नही सकते ! आन्दोलन में जितनी भूमिका ज़मीनी कार्य की रही,उतनी नही तो बहुत बड़ी भूमिका सोशल मीडिया की भी रही....अगस्त क्रान्ति के समय इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया ने आन्दोलन को दिन रात घर घर तक पहुँचाया....ऐसा कवरेज शायद ही कभी हुआ हो,लेकिन इसके तुरंत बाद सरकार ने अपनी पकड़ चैनलों पर कड़ी कर दी....पत्रकारों के सुर बदलने लगे....खेमे बदले गये,...आम जनता की साथी रही भारतीय मीडिया अचानक सरकार की वकील बन गयी,...जो मामला भी खुद रखती,दलील भी देती और फैसला भी सुना देती....उस वक़्त सबसे बड़ा सहारा बनकर सोशल मीडिया ने ही ख़बरों का मैदान संभाला...टीम अन्ना के बारे में जब गलत खबरें मसाला लगाकर परोसी जाती,तो बेचैन समर्थकों को सोशल मीडिया ही एक सहारा दिखता, जहाँ से इन ख़बरों का खंडन कर सच सामने लाया जाता था....तमाम बड़े बड़े सितारों ने अपने समर्थन को इन्ही के ज़रिये आन्दोलन तक पहुँचाया....देश देश से कोने कोने तक हर पल आन्दोलन के साथी एक दूसरे की असमंजस की स्थिति को सुलझाने में लगे रहे....आज अगर हम लोगों को आन्दोलन के विषय में समझाना चाहे,.तो शायद एक दिन में मुश्किल से 10 लोगों तक अपनी बात पहुंचा पाए,वहीँ फेसबुक,ट्विटर पर एक पोस्ट हज़ार लोगों तक जाती है,वो भी चंद मिनटों में...ऐसा कहकर मैं उन लोगों के योगदान को कम नही आंक रही,जो व्यक्तिगत रूप से लोगों तक पहुँच रहे हैं...पर इस आन्दोलन का मकसद बहुत बड़ा है,..और वक़्त उतना ही कम...मकसद है जड़ तक जा चुके भ्रष्टाचार को ख़त्म करना...हर मोर्चे पर लड़ना होगा....इस बात को झुठलाया नही जा सकता कि युवा वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सा फेसबुक,ट्विटर से जुड़ा है....आप उस युवा को अपनी बात सुना रहे हैं,वो एक युवा आपकी बात को घर के बाकी दस सदस्यों तक पहुंचाएगा...कारवा बढ़ता जायेगा....अगर सोशल मीडिया इतना ही बेकार साधन होता ,तो सरकारी ज़मात इसका गला घोंटने पर आमादा नही होती !
आन्दोलन में जाते रहने के साथ सोशल मीडिया में जगह संभाली  ! अरविन्द ने कभी किसी को चैन से नही बैठने दिया, आये दिन कोई न कोई आन्दोलन,घेराव,कभी उनके उपवास ,अनशन !उनकी सेहत की फ़िक्र ने दिमाग को आराम नही  दिया  !जैसे ही आन्दोलन से अलग पार्टी बनी  , हम पूरी तरह से मीडिया से गायब हो गए ! मर्ज़ी जितने बड़े पोलखोल हो,खुलासा हो, मीडिया का ध्यान इन पर नही गया ! सब अम्बानी खुलासे के बाद ऊसकी  भेजी   एक चिट्ठी से हुआ ! लोकतंत्र का चौथा खम्बा ,पैसे और बिकाऊपन  की दीमक से जर्जर हो गया  ! सारा भार सोशल मीडिया पर था ! दिन रात की मेहनत शुरू हुई ! टीमें बनी ,पर वर्चुअल दुनिया में एक दुसरे को  समझ पाना बेहद मुश्किल ! लड़ाई झगडे , गलतफहमियां , सबने काम और मुश्किल किया ! लेकिन इस मोर्चे पर हारना मतलब बहुत बड़ी  हार ! जब आन्दोलन का पेज ले लिया गया , आईएसी नाम छीन गया , तो पास कुछ पहचान नही बची ! बस हम थे, और साथ थे अनगिनत हौसले ! क्रांतिकारियों का एक ऐसा जत्था देश में पैदा हो  गया था , जो सरकार को नाकों चने चबवा रहा था ! 6 लाख के पेज को छोड़ने के बाद फिर नयी   शुरुआत की ! आईएसी से अलग पहचान बनायी ! भाजपा और कांग्रेस के सोशल मीडिया को जहाँ पैसों पर रखे टट्टू अनाप शनाप पैसा लगाकर चला रहे थे, वहीँ  पार्टी के लिए इस मोर्चे पर भी निस्वार्थ कार्यकर्ता लगे हुए हैं !



अब इस आन्दोलन ने मुझे क्या दिया ? देश,देश भक्ति से हटा दो , तो एक ऐसा जूनून पाल लिया जिसे , दुनिया अरविन्द केजरीवाल के नाम से जानती है ! "जितनी शिद्दत से मैंने तुम्हे पाने की कोशिश की है,उतनी शिद्दत से सबने मुझे चिढाने की कोशिश की है" ! ;) दिन रात , सुबह शाम , हर सेकंड, हर पल अगर एक ख्याल दिमाग से नही गया , तो बस यही ! एक वो थी मीरा,एक मैं बन गयी ! एक झलक देखने के लिए क्या क्या नही किया ! एक मुस्कुराहट को पाने के लिए हदें पार कर दी ! मुझे पता है इस पागलपन का कोई अंजाम नही है ! वो आसमान है, और मैं धरती ! पर फिर भी मेरे ऊपर उसका साया पड़ना लाजिमी है ! मैं जितना मर्ज़ी चाह लूं, अछूती नही रह पाती ! मैं ऐसी ही रहूंगी ! ये जूनून हर दिन हर पल अब सिर्फ बढ़ेगा, कम नही होगा ! हज़ार रायचंद आये और गए कि ये मत कहो , वो मत कहो , ऐसा मत लिखो, वैसा मत लिखो ,पर सब हार कर चलते बने ! अब भी यही कहूँगी, नाकाम कोशिश नही  करनी चाहिए !  मेरी ख्वाहिशें , मेरी हसरतें , मेरी चाहते , सिर्फ मेरी है ! किसी और की नही , जो इस जूनून में काबिज है, उसकी भी नही और जो उस जूनून के दायरे में हैं, वो भी नही ! 


आगे आगे देखना है,क्या खोती हूँ क्या पाती हूँ ! पर अब डर नही लगता ! यहाँ मैंने खुद को जिया है ! यहाँ मैंने खुद को पाया है ! भविष्य को दाव पर लगाकर भले ही कुछ लोगों को ठेस पहुंची हो , पर खुद से नज़र मिला सकने की ख़ुशी है ही कुछ और !





 

Sunday 26 May 2013

मैं ज्योति सिंह पांडे , दामिनी नही हूँ

मैं  दामिनी  !  मैं दामिनी हूँ ? पर  कैसे ?  किसने रखा मेरा ये नाम ? मेरे माँ  पापा ने ?  या  मेरे भाइयों ने  ?  या  उन  लोगों ने जिन्होंने  मुझे  गोद  में खिलाया है ,  जिनके साथ खेलकर मैं  बड़ी  हुई हूँ   ! जिनके साथ मैं झूला झूली  उन सहेलियों ने , मेरे  सारे  दोस्तों ने  जिनके साथ मैं  सड़क किनारे गोल गप्पे खा रही  हूँ , या फिल्म देखने जा रही  हूँ ! नही !  इसका जवाब मेरे पास अभी है नही, मैं जानती नही ,.. शायद वक़्त कुछ सोच कर बैठा है ! शायद मेरे नए नाम के पीछे कुछ ऐसी कहानी हो जो मुझे अभी नही पता न हो !  इस सवाल का जवाब  मिलकर  ढूंढते हैं !

मेरे पिता किसान है !  गरीब हैं !  इनकी हैसियत नही कि अपनी आँखों से कोई सपना देख सके , इसलिए  इन्होने  अपने  सपनो को  सहेज कर  मेरे  भीतर  भरा है  ! इन्होने अपनी ज़मीन बेच कर  मुझे  इतना पढाया  है , कि  मैं  सिर उठाकर  जी सकूं ! इन्होने मेरे  जीवन में रौशनी भर कर  अपने  जीवन  को  अंधेरों  से  बचाने  के  लिए  मेरा  नाम "ज्योति"  रखा !  मैं  "ज्योति सिंह पाण्डे" !  बी एस सी  कर रही हूँ !  माँ बाप , छोटे भाई , सब गाँव में रहते हैं ! जिंदगी सुकून में है ! एक दम आराम !  आम जिंदगी जैसी होती है, वैसी ही मेरी   है ! दिल्ली  में  रह  रही  हूँ !  दरअसल  जहाँ  मेरा  गाँव  हैं , वहां  कुछ ज्यादा  है  नही, अब माँ बाप  चाहते हैं की  मैं  खूब पढ़ लिख जाऊं, और बाद  में अपने भाइयों का भविष्य भी बनाऊं !  फिर मेरे  ऊपर  बहुत  सी  ज़िम्मेदारी है !  उफ़ ! दिल्ली  सपनो का शहर है !   हर राज्य कहीं यूपी वालों का है, कहीं  बिहारियों का ,  कहीं मराठियों का , कहीं  तमिल का  !  एक  दिल्ली  ही है , जो  सबका संगम है !   ये  बाहें  पसारकर  सबका  स्वागत करती  है ! सबसे आत्मीयता से मिलती  है !कुछ ख़ास है यहाँ , अपनापन सा ! कहते  हैं  ये  सुरक्षित  नही  है !  मुझे ऐसा नही लगता ! "सुरक्षित  असुरक्षित जगह नही , लोग  होते  हैं , माहौल होता है ! एक सड़क किसी को खा नही सकती  !  एक  शहर  किसी को  निगल  नही  सकता"  ! 

अभी  मेरे  पेपर हैं कल ही ! पढाई लिखाई  सब  ट्रैक पर है !  पेपर  ठीक ठाक  निकल जाएं , फिर  नौकरी  ढूंढनी होगी,  मैं  बोझ  नही  बनना  चाहती  माँ  बाप  पर ! कम  से  कम  इतना कर लूं कि  पढ़  लूं  और  अपना  खर्चा  भी  निकाल  लूं ! 
तनाव सा चल रहा है !  आज आखिरी पेपर  है ! सब ठीक ठाक है, फिर भी न जाने क्यों , मन कुछ बेचैन है , कोई अनजान सी आहट साँसों से टकरा रही है  ! आज पेपर  दे लूं , फिर बाहर जाने का प्रोग्राम बनाउंगी !
आह ! अब चैन की सांस आई !  आज पेपर  पूरे  हुए  ! अब  दिमाग को ज़रा आराम चाहिए ! थोडा सा चेंज  , अरुण को फ़ोन करती हूँ ! शाम तो हो ही गयी ! रात को फिल्म देखने जाने से बेहतर क्या हो सकता है !
<<वसंत विहार बस स्टॉप>>
यार ये ऑटो क्यों नही मिलता !  इन ऑटो वालों को तो माफिया होना चाहिए, वाजिब दाम मांगने  की बजाय  सीधे सीधे गैर वाजिब वसूली करते हैं ! अब और कितना खड़ा रहना पड़ेगा स्टॉप पर , बस भी नही आ रही ! दिल्ली को  हाई फाई बनाने की बात खूब करा लो नेताओं से, पर ये डीटीसी की शक्ल तो नसीब नही होती !
  अरे बस आ गयी ,पर चार्टर्ड है ! इसी में चलें क्या ? चलो आ जाओ , वो बुला भी रहा है ! रात हो  गयी , और कब तक इंतज़ार करेंगे ,चलते हैं !
एक बस, एक भी सवारी नही ! और ड्राईवर के अलावा,एक कंडक्टर, और तीन सहायक  ! दीदी टिकट लो ! अरे माफ़ करना गलती से हाथ छू गया !
कोई बात नही भैया !
"इसके आगे दामिनी, जिंदगी के सबसे बुरे ,खौफनाक पलों को जीने वाली थी ! अगले 2 घंटे, उसके जिंदा शरीर को गिद्ध की तरह जैसे  नोचा खसोटा गया, उसने दिल्ली को नही देश को ज़ार ज़ार रुलाया ! दामीनी के साथ कंडक्टर ने बदतमीजी करना शुरू किया ! वैसे ही उसके दोस्त ने उसका बचाव किया ! कितनी बड़ी मुसीबत सामने मुंह खोले खड़ी थी , उसका अंदाज़ा अगले ही पल दोनों को हो गया ! उसके दोस्त को मार मार कर ,पीछे डाल दिया !
अब दामिनी अकेली 5 दरिंदों के आगे घिरी थी ! बलात्कार का मत्त्लब है किसी के साथ उसकी मर्ज़ी के बिना सम्बन्ध बनाना , मतलब "बलात " .अर्थात बल के आधार पर ! दामिनी  का सिर्फ बलात्कार नही हुआ था ! उसके कतरे कतरे को लड़की होने की सजा  दी गई थी !
दामिनी को पहले बहुत ही बुरी तरह से मारा पीटा गया ! उसके सर को बस की ज़मीन पर पटक पटक कर मारा ! अधमरा करने के बाद , अब एक एक ने बारी बारी से उसके साथ बलात्कार किया !  बलात्कार ,सिर्फ यौन सम्बन्ध बनाने तक नही था ! दांतों से सिर से पैरों तक जगह जगह काटा गया ! एक एक ने न जाने कितनी कितनी बार दामिनी  से बलात्कार किया !
दामिनी ने इस बीच हिम्मत नही हारी थी ! उसने आत्मसम्मान  के आगे जान को अहमियत नही दी थी ! हो सकता है दामिनी सब कुछ चुपचाप सह लेती ,होने देती जो हो रहा था , तो उसकी जान नही जाती ,पर जिनके खून में संघर्ष में हो, वो हालातों को जीतने नही देते  ! पुरुष के अहम् को सबसे ज्यादा चोट शायद तभी पहुँचती है , जब औरत ,बगावत करने लगे ! जब वो उसके अहम् ,उसकी मर्ज़ी को न जीतने दे ! ऐसे वक़्त आदमी कुचलने पर उतर जाता है ! वही दामिनी के साथ हुआ ! उसके संघर्ष ने , उसकी हिम्मत ने उनके अहम् को चोट दी थी, तो अब बारी थी आखिरी और सबसे दुर्दांत चोट !
बस में पहिये बदलने के लिए एक मोटी सी लोहे की रॉड होती है ! जो बांस के जितनी मोटी  होती है ! दामिनी के योनी में लोहे की यही रॉड पूरे फ़ोर्स के साथ अन्दर तक घुसाई गयी और फिर उसे  ताकत के साथ जोर जोर से घुमाया गया , जिससे उसकी आंतें उसमे लिपट गयी ! फिर उस रॉड को एक दम से खींच कर बाहर निकाला , और साथ में आंतें भी बाहर आ गयी !
इसके बाद दामिनी को बिना कपड़ों के यूँ ही अपने दोस्त के साथ चलती बस से नीचे फेंक दिया ! दर्द से कराहता वो है, जो जिंदा हो, दामिनी मौत से भी ज्यादा मुर्दा हालत में थी ! दर्द भी अगर दर्द की इन्तेहा से आगे बढ़ जाए, तो महसूस होना बंद हो जाता है ! एक लड़की होने के नाते इतना जानती हूँ , लड़की जितने मर्ज़ी दर्द में हो, आबरू से कपड़ा हटना , गंवारा नही होता ! 
पूरे आढे घंटे बीच सड़क पर दामिनी खुले शरीर से, खून में लथपथ , बाहर निकले मॉस के लोथड़ के साथ पड़ी रही ! दिल्ली के दिलवाले , गाड़ियों में बैठे पास से गुज़र रहे थे , शीशा नीचे उतारते , नाक मुंह  सिकोड़ते, थोड़ी हाय तौबा करते और हॉर्न बजाते हुए , साइड से निकल जाते ! दामिनी मदद मांग नही सकती थी ! इसलिए दिल्ली वालों ने मदद दी भी नही  !   रास्ते में जब कुत्ता घायल पड़ा होता है, तो मुन्सिपलिटी की गाड़ी उसे अस्पताल भेज देती है ! इस  देश में एक लड़की की किस्मत उतनी अच्छी भी नही होती ! आश्चर्य नही होता अगर उन 25 मिनट में दामिनी और किसी के हाथों बलात्कार की शिकार हो जाती !

दामिनी जब अस्पताल पहुंची, तो दर्द की  गहरी बेहोशी में भी उसकी अलकों से आंसू लुढ़क रहे थे ! डॉक्टर सिहर उठे , उसे देखकर ! बाहर तो बाहर , अन्दर के अंग भी सब बाहर थे ! खून कहाँ से कैसे रोका जाए , कुछ पता नही था ! उन दिनों  दामिनी क्यों जी ?  शायद पहले ही दिन सब जानते थे , कि उसका बच पाना मुमकिन नही था ! पर एक अकेली लड़की दिल्ली तो दिल्ली पूरे देश को शर्मिंदगी में डुबो गयी ! सबकी रातों की नींद उड़ गयी  ! लड़के लड़की बूढ़े बच्चे अगली सुबह से सड़कों  पर आ गए दामिनी के लिए इन्साफ मांगने ! लोग धरने में बैठे रोते रहते ! माँ बाप की आँखों से नींदें उड़ गयी, सबको अपनी बेटियों में दामिनी दिख रही थी !

दामिनी की जीने की इच्छा थी ! वो हर दिन खुद के लिए लड़ रही थी ! उसे न बचा पाना हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी नाकामी थी ! उसे सिंगापुर जाने देना हमारी सबसे भूल थी ! हम उसे मौत के मुह में छोड़ आये थे ! क्या सोचा होगा  , दामिनी  ने आखिरी वक्त में ? दुसरे देश के किसी आस्पताल में पलंग पर पड़ा उसका थका शरीर अपने अच्छे दिन याद कर रहा होगा या जिंदगी के आखिरी दर्दनाक पल ! उसे  हम सबसे  कितनी शिकायत होगी ! हम जो उसके नंगे शरीर को सड़क पर आधा घंटे हज़ार नज़रों के हवाले कर आये, हम जो उसे अस्पताल न पहुंचा कर उसके दर्द को जल्दी से जल्दी आराम नही दे पाए, हम जो उसके लिए लड़ नही पाए ! हमारी नाकामी है कि एक दामिनी को खोने के बाद हमारे आगे ही गुड़िया बन गयी !

शायद उसने कुछ सवालों के जवाब मांगे हों, शायद हर लड़की इन सवालों के  जवाब मांगती  है ! क्यों कुछ आदमियों को दर्द में लिपटी चीखें सुकून देती हैं ? क्यों औरत का छटपटाना,गिडगिडाना मर्द सीना चौड़ा करता है ? क्यों बहता खून सुकून देता है ? क्यों हाड़ मास एक आत्मा से ऊपर हो जाते हैं ?

<<<मैं दामिनी>>>>>>>>" नही हूँ " !  ये नाम मुझे मेरे माँ बाप ने नही दिया , ये नाम मुझे मेरे साथ बड़े हुए संगी साथियों ने नही दिया , ये नाम मुझे मेरे साथ हंसी ठिठोली करने वाले दोस्तों ने नही दिया ! ये नाम मुझे मेरी गोद में खेले भाइयों  ने नही दिया ! ये नाम आपने दिया है ! @आपने  जिन्होंने मुझे सड़क पर लाश की तरह छोड़ दिया ! @आपने  जिन्होंने दुपट्टा नही, तो कफ़न भी मुझ पर नही ढका , @आपने , जो मेरी चीखों से नही जागे , @आपने  जिन्होंने मुझे देश में जीने नही दिया , @आपने  जिन्होंने मुझे देश में मरने भी नही दिया @आपने  , जिन्होंने मुझे दामिनी बना दिया !

मैं "ज्योति"............................................................ अब भी जल रही हूँ !
   
 
 
  

कच्ची उम्र की अनसुलझी कल्पना


भावनाएं बहते पानी की तरह हैं ! एक बार किनारे से छूटी , तो मर्ज़ी जितने बाँध बना लो, इनका बहाव सब साथ ले जाता हुआ आगे बढ़ जाता है ! मेरी कल्पना की उड़ान हमेशा से ही गगन चुम्बी रही ! जिस उम्र में रिश्ते , बंधन , आत्मीयता , जुड़ाव की बारहखड़ी पता नही होती , मैंने इनसे मिलने वाले सुख दुःख  की  कल्पना करना सीख लिया ! और  मैंने कलम उठा ली ! पन्नों पर इश्क की लहरें समुद्र  से भी तेज़ गोते लगाती हैं !
 
 
  मैं नौवीं क्लास में थी !  एक दम आज़ाद मनमौजी पंछी, वो तो आज भी  हूँ ! पता नही दिल क्यों मुझ से पहले बड़ा होना चाह रहा था ! डायरी उठायी , पेन चलाया , और न जाने किसकी अधूरी मोहब्बत पन्नों पर बिखर गयी !  ये कम से कम 13 साल पहले लिखा था, बहुत छोटी उम्र में , बिना इसे जीए, पर हाँ महसूस किया था !
 
 
"जब मैं उनसे पहली बार मिली,एक सुनसान कमरे में वो अकेले बैठे थे,
सारा ज़माना साथ छोड़ बैठा था.....जैसे ही मैंने अन्दर जाकर कंधे पर हाथ रखा,
बोले- अच्छा हुआ तुम आ गयी,यहाँ तो खुद अपनी परछाई काटने को दौड़ रही है..
कितनी तन्हाई है यहाँ...
 
 
 जब मैं उनसे दूसरी बार मिली तो अकेली अधेरी राह पर अकेले चल रहे थे,..
मैंने जैसे ही हाथ थामा,..मुस्कुरा पड़े,...बोले एहसान तुम्हारा,जो साथ देने आई हो,
वरना कोई हाथ थामने को राज़ी ही नही था..सब मुह फेर चुके हैं....
 
 
तीसरी बार एक शानदार महफ़िल में कोने में चुप चाप खड़े थे,.हाथ में जाम
था ....जैसे ही मैंने उन्हें संभाला,जाम छलक गया...अरे वाह कितना शुक्रगुजार
हूँ तुम्हारा..इस महफ़िल सब पराये हैं,एक जाम अपना है,जो न गले से उतरता है,
न बरसता है...अब तुम्हारा नशा,इसकी गुलामी से आज़ाद करा देगा...
 
 
फिर मैं चौथी बार उनसे मिली,तो उन्ही की शादी थी.....मेरा परिचय
अपनी बीवी से कराया "और बोले,----------
 
"जानेमन इनसे मिलो,हमारी जान
पहचान की हैं,...चाँद मौकों पर मिले हैं इनसे....
<<<<<पहली मुलाक़ात जब हुई, हम
कुछ मुद्दा सुलझा रहे थे,बेवक्त आयीं और हमे डिस्टर्ब कर दिया  !
 
<<<<<<दूसरी बार जब मिली तो हम रास्ते पर कुछ अनमोल चीज़ तलाश रहे थे,आकर
ऐसा हिलाया वो तो क्या मिलती,जो था पास,वो भी गिरवा दिया !
 
<<<<<<अगली मुलाक़ात में हम एक शानदार नवाबी महफ़िल में थे,हाथ में शानदार जाम था,
ऐसा फटका मारा,की जाम गिरा दिया...अमा क्या बेईज्ज़ती की थी हमारी !
 
<<<<<<अब चौथी बार आज मिल रही है,ज़रा संभल कर रहना,कहीं पहली मुलाक़ात
में तुम्हे हमसे अलग न कर दे,इन्हें "जुदा" करने की बहुत बुरी आदत है !

Saturday 25 May 2013

पीसीआरएफ के बाकी बचे किरदार



पिछले ब्लॉग में पीसीआरएफ के 7  किरदार आपके सामने आये थे , जिनके बारे में कहने को , यूँ तो बहुत कुछ  था ,पर ब्लॉग में शायद इससे ज्यादा नही आ सकता था ! उन्हें आप उनके साथ वक्त बिताकर  बेहतर जान सकते हैं ! आप सच में खुश होंगे ! बच्चों जैसा भोलापन है सबमे ! कह सकते हैं कि अरविन्द की मासूमियत की छाया सब पर थोड़ी थोड़ी पड़ी है !
इस  बीच कुछ दोस्तों ने मजाक में कहा कि सिर्फ पीसीआरएफ ने पार्टी नही बनायीं, दिल्ली वालों की  ग़लतफ़हमी है ,कि आन्दोलन वही चला रहे हैं ! तो सबको बारे में लिखो ! दरअसल आन्दोलन सबका है ! पर कार्यकर्ताओं के बारे मे, नेताओं के बारे में आये दिन कुछ न कहा जाता रहा है, और लिखा जाता रहा है ! लेकिन ये लोग हमेशा परदे के पीछे रहे , पर्दा जब भी हटा , एक महान व्यक्तित्व के आगे इनकी भूमिका थोडी नज़रंदाज़ हो गयी  !
इसे लिखने का सबसे बड़ा मकसद यही था ,कि कहीं न कहीं इन्हें गलत समझा गया !  न जाने क्यों तरह तरह के पूर्वानुमान से सबने  खुद ही मान लिया कि तानाशाह है, किसी को भूमिका देना नही चाहते , काम बाँटना नही चाहते ! बाहर से आने वाले से आत्मीयता से नही मिलते !  सच ?????? 
कहीं किसी और गलत जगह तो नही घुस गए थे ! मुझमे लोगों को पढने और उन्हें समझने की कुदरती अच्छी समझ है ! जिस दिन से मैं यहाँ  गयी , मुझे बिलकुल एलियन का सा बर्ताव झेलना नही पड़ा ! सब  इतना अच्छा था , घरेलु सा, एक दम अपना सा , कि हम अलग अलग रंगों की तरह साथ घुल गए !
चलिए अब इस इमारत की एक और मंजिल  पर चलते हैं ! कुछ और किरदारों को  टटोलते हैं  !  इस तस्वीर के  कुछ और रंगों में ऊँगली डुबोते हैं !
अच्छा तो "राम" का नाम लेकर सबसे पहले आते हैं <<<<<मिताली>>>>>> पर    !   { राम अर्थात श्री राम, हे राम वाला राम  ...कहीं आप को लगे कि मैं राम भाई की बात कह रही हूँ }
मिताली आन्दोलन से शायद फरवरी २०१२ से जुडी हैं ! कहते हैं या तो आप अरविन्द को  रख सकते हैं या चैन को  .... आए दिन  कभी कोई जनसभा , कभी  प्रेस कांफ्रेंस , कभी  कोई पोल खोल , या  कहिये किसी  नेता की " बखिया  उधेड़ो प्रथा"  .... वहां बनने वाली वीडियो की कांट छांट मिताली के जिम्मे है ! काफी काम होता है ,मुझे  पता है !  "प्यारी सी लड़की है, बहुत ज्यादा बोलते नही देखा पर , एक बात जो उसे देखकर  नोटिस  की  ,कि वो ये कि इसके चेहरे पर हमेशा नवजात शिशु वाले हाव भाव रहते हैं , आँखों में इतना आश्चर्य कि  जैसे अभी दुनिया में आँख खोली हो , मालगाड़ी और इसमे रेस हो तो गुंजाइश है मालगाड़ी जीत जायेगी ! जंतर मंतर पर देखा था , मकड़ी के जालों से बिखरे  तारों में इस तरह उलझी रहती है , कि एक किलोमीटर  के  आयतन में  किसी   को फटकने नही देती !

<<<<जावेद भाई>>>>  रंगों के उस्ताद , रचनात्मकता के बादशाह , और  हुनर  के  धनी  ! वैसे तो बहुत से और काम करते हैं ! वेबसाइट बनाने वाले , ब्लॉग  वगरह , पर  पार्टी के परमानेंट वाले रंगरेज हैं ! बैनर बनाते हैं !  रोज़ हम किसी न  किसी पोस्टर बनाने वाले को  अगवा करके लाते हैं , मतलब उसकी रजामंदी से , पर  टिक नही पाता ! ये  टिके  हुए  बैनर मास्टर हैं !  एक बैनर बनाने वाले का काम  होता एक बहुत बड़े इवेंट को,  घटना को, बयान को , चंद  लफ़्ज़ों में , और चुटकी भर रंगों में पेश कर सके, जावेद भाई उस नव्ज़ को जानते हैं !  खासकर सोशल मीडिया पर तो मेहरबानी  बनी रहे यही इच्छा है

<<<<<रोहित>>>>>>हे हे हे हे हे हे हा हा हा हा हा हा हा ही ही ही ही ही ही !!   इसकी यही पहचान है !  पता नही इसने बचपन में  ऐसा कौन सा चुटकुला सुना था , कि हंसी गले में ही फांस बन कर फस गयी है !  यह "सारथि" है !  किसके ?? वही जो जन्माष्टमी को पैदा हुए थे ! अरे  कृष्ण नही " अरविन्द" ! इस जन्म में इसने कुछ ऐसा किया हो ये तो  पता नही, पर पिछले जनम के पुण्यों का फल  भगवान् ने ऐसे दिया कि अरविन्द की गाड़ी पर ये चालक अर्थात ड्राईवर हैं ! सुबह से लेकर रात तक उनके  हर सफ़र का  ये हिस्सा बनता है !  अरविन्द से सहानुभूति है , पर इसके  भाग्य  भगवान् टूट रहे  हैं ;)  अरे हाँ , अरविन्द को "<<<<नेता जी">>>> बोलता है !  बेहद खुशमिजाज़ इंसान है !

<<<<विनोद भाई >>>>  अन्ना आन्दोलन से भी पहले से है !  आन्दोलन का , प्रेस कांफ्रेंस का , इवेंट या किसी भी और कार्यक्रम का लाइव  दिखाते हैं !  सीधे साधे से  ,रोज़ जितना बोलने का कोटा घर से लाते होगे, आढे से ज्यादा वापिस घर ले जाते होंगे ! इनकी विशेषता <<<<< पुरानी फिल्मों में नही देखे थे क्या ? एक करैक्टर होता था , " हिसाबची मुंशी " ! उँगलियों पर  ऐसे नाप तोल कर हर बात का ,सामन का, हिसाब रखते हैं कि क्या कहूँ ?  अभी का  वाकिया है !  एक सेमिनार था ! गलती से अपनी नोट पैड नही ले गयी थी ! इनसे इनकी डायरी ले ली ! गलती से ! यकीन मानिए बाद में एहसास हुआ ,कि गलती ही थी ;)  उस डायरी में इनकी जान थी मुझे पता नही था ! पूरा 6 घंटे इनका ध्यान सिर्फ उसी  डायरी में था ! मज़े की बात   है  300 पन्नों से ज्यादा की डायरी के ढाई  पेज  भरने पर तपाक से बोले  "क्या पूरी डायरी भर दोगी आज ही " ;)  ?? थक कर मैंने वापिस कर दी, तो उन पेजों को फाड़ कर देते वक़्त चेहरे पर ऐसे भाव थे , जैसे अपने बैंक खाते में बची आखिरी  रकम मेरे हवाले कर रहे  हो !
<<<<बादल>>>>  कैमरा मैंन हैं आन्दोलन में ! कॉलिंग का काम भी  करते हैं कभी कभी  जब वक़्त हो !  मनीष के साथ कबीर में काफी काम कर चुके थे !  "स्टार न्यूज़ "   में  थे  पहले !   कहो  काजल की  कोठरी  से कोई काला हुए बिना नही निकलता, की कहावत को  धता बता आये ! सुख देखा नही गया  हमसे, तो  आन्दोलन में ले आये ;) खूब झंकार  सुनते थे वहां पैसे की, पर देश  भक्ति की तान  पर जो  कदम थिरकते हों ,  वो किसी भी रास्ते पर चलें ,   पीसीआर एफ   की   मंजिल  पर  जाते हैं !  इन्हें बिलकुल पछतावा नही कि  दौलत के धनी  एक खबरिया चैनल को छोड़कर हम खानाबदोश आन्दोलन कारीयों के साथ आ गए !  कहते हैं पर्रिवार है मेरा , काम करते करते वक़्त कैसे बीतता है, पता ही नही चलता !  सुख दुःख बाँट रहे हैं ,क्या कम है !

राम  भाई आप  इतना बढ़िया कंटेंट हो, कि किताब लिख सकती हूँ , आप पर  ! कभी फुर्सत में  आपको पन्नों पर ज़रूर उतारूंगी ! 
इस भाग में इतने लोगों से मुलाक़ात हुई !  ब्लॉग से  मेरा  मकसद  इन लोगों को खुश करना नही है, मेरे साथ इन सब के रिश्ते वैसे भी  मधुर  हैं ! मेरी कोशिश है , कि आप उन लोगों से मिले  जो  आपसे एक दम दूर हैं ! जिन  कैमरों से आप आन्दोलन को देखते हैं, उन्हें चलाने वाले  हाथों का एहसास   , आपको भी हो !  पूर्वानुमान से किसी को न पहचाने , जाने ! जब भी मिलें, कोशिश करें कि एक दम ताज़ी मुलाक़ात  हो !
मेरा निजी ब्लॉग है, इसलिए एक दम पारिवारिक भाषा का प्रयोग है, इसे आधिकारिक मान कर आरोप न लगाएं कि  "आप  ने   आपको  यही सिखाया है क्या " ??.........................
किरदार अभी बाकी हैं मेरे दोस्त .............................................................................................