Tuesday 21 May 2013


"एक बार महात्मा बुद्ध रास्ते से गुज़र रहे थे..तभी एक आदमी उन्हें जोर जोर से गाली देने लगा....महात्मा बुद्ध मुस्कुराए,और चुप चाप आगे चल दिए....ये सब देख कर वो अजनबी आश्चर्य में पड़ गया और महात्मा बुद्ध से पूछा,...मैंने आपको इतनी गालियाँ दी पर आपने कोई प्रतिकार तक नही किया और न ही बदले में मुझसे कुछ कहा....महात्मा बुद्ध बोले मान लो मैं अभी तुम्हे कुछ सामान दूं और तुम उसे न लो, तो मेरी चीज़ किसके पास रहेगी???आदमी बोला,आपके पास.....महात्मा बुद्ध हँसे और बोले,बस ठीक इसी तरह तुमने मुझे गालियाँ दी पर मैंने स्वीकार नही की,तो वो तुम्हारे पास ही रह गयी.......आदमी महात्मा बुद्ध के पैरो में गिर पड़ा........इस कहानी का औचित्य बस इतना है की सामने वाला वही देगा,जो उसके पास है,पर हमे सिर्फ उतना लेना चाहिए जो हमारे काम का है.....

जब दो लोग जिनका आपस में कोई रिश्ता नही होता ,बात करते हैं,तो उन दोनों की आपस की बातचीत उनके पूरे जीवन की झलक होती है....बातचीत में प्रयोग में लाये जाने वाले शब्दों का चुनाव जैसा होगा , उसी से पता लग जायेगा की उसकी परवरिश किस माहौल में हुई है....उसने अपने पहले स्कूल,यानि परिवार,पहला गुरु यानि अपनी माता से क्या संस्कार लिए हैं......आजकल हर तरफ चर्चा के दौर चल रहे हैं ....बात चाहे राजनैतिक हो,या सामजिक,हर एक व्यक्ति बुद्धिजीवी है,.....पर इन बहुत सारे बुद्धिजीवियों की भाषा यदि आप सुनेंगे तो लगेगा की किसी ने कीचड में पत्थर मार दिया हो,और उसके छींटे हवा में उड़ रहे हो.....

इक सभ्य इंसान अपनी बात को तर्क,धैर्य,संयम के साथ रखता है,और उस विषय पर सामने वाले की राय को बराबर सम्मान देता है,वहीँ दूसरी और,जब एक उतावला,मद में चूर,हठी व्यक्ति अपनी बात कहता है तो वो उसे मनवाने के लिए तत्पर रहता है....उसके पास उसे सही साबित करने के लिए न ही तर्क होंगे,न ही सबूत....खुद को कमज़ोर होता देख वो प्रतिकार करेगा,भद्दी गालियाँ देगा,आपके चरित्र पर पहुंचेगा .... और हर वो कोशिश करेगा जिससे आपका धैर्य जवाब दे जाए,और आप उसी के स्तर पर आ जाये ......उस वक़्त अगर आप उसी के स्तर पर आकर मर्यादा लांघ गये तो जीत उसकी होगी....

इस सन्दर्भ में एक बात और गौर करने लायक है की क्यूंकि हमारा समाज पुरुष प्रधान है,तो जब बहुत सारे लडको के बीच कोई लड़की अपना मत रखती है,तो ये समाज के मालिको को बर्दाश्त नही होता और वो उसे कमज़ोर करने की हर संभव कोशिश करते हैं....सबसे पहले वो लड़की के चरित्र पर हमला करेंगे,फिर उन सभी गैर ज़रूरी शब्दों का इस्तेमाल करेंगे,जो किसी लड़की के कोमल मन को चोट पहुंचाने के लिए काफी होते हैं...फिर वो बहुत सारे पुरुष के बीच उपस्थित लड़की को क्या क्या कहते है,ऐसे बेहूदा तर्क देंगे......और अंत में इसे अपनी जीत समझ कर मन ही मन इतरायेंगे.....कितना हास्यप्रद है यह सब.......पर सच मानिए यह सच में कहीं चोट करता है....कहीं भीतर.....क्या ऐसे लोग अपने घर की औरतों को सम्मान दे पाते होंगे.....क्या इनकी बहु बेटियां घर में सारा वक़्त खुद को ढककर घूमती होंगी......क्या कुछ भी बोलने से पहले वो उसका अंजाम सोचती होंगी.....

इन लीगों की सबसे बड़ी हार होती है,की इनका डट कर सामना करे.....इनके झूठे अहम् को अपनी समझदारी और अपने तर्क से हराए....बोलने दे जो बोलना है,इनके गंदे विचारों को बहार निकलवा कर इन्हें खाली कर दे और फिर अच्छी बात भरे........इनके लिए एक ही सत्य है जो गाँधी ने कहा है "पहले ये तुम्हारी उपेक्षा करेंगे,फिर वो तुम पर हँसेंगे,फिर वो तुम से लड़ेंगे,अंत में जीत तुम्हारी होगी "

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