Friday 7 June 2013

गर ये प्रेम दिवस है तो वो क्या था .....


"प्रेम दिवस"!!गर प्रेम दिवस है ये,
तो फिर वो तब क्या था बोलो,
जिस दिन मैंने आँखों में इक,
नन्हा सपना घोला था तब,जब,
तुम उन आँखों पर चुम्बन कर,
प्रेम की वर्षा जब करते थे,तब
बोलो,जब मैं कुछ सकुचाई तुमसे,
मिलने आई थी,तुम बैठे थे,लोग
बहुत घेरे थे ऐसे,जैसे वो ही हैं सब
अपने और मैं ही हूँ इक मात्र परायी।

गर ये प्रेम दिवस है तो बोलो वो क्या था,
जब मुट्ठी बांधे मैं बैठ गयी थी,और
रही थी पूछ यही,बोलो क्या है भीतर
इसके,एक नन्ही सी इच्छा बांधे,जो अपने
मन की मैं फिरती थी,क्या तुम इसको
धारण कर मांग में मेरी भर दोगे कुछ
वचन वो ऐसे ,जो नही मिले तो शरीर भले,
पर आत्मलींन मैं हो जाऊं तुममे,कुछ ऐसा कर दोगे !!

गर ये प्रेम दिवस है तो बोलो वो क्या था,
जब तुम बैठे थे पास मेरे और मैं दूर बहुत थी,
कुछ सोच सोच कर हैरान ऐसे,कैसे तुम हो
सकते हो सबके ,जब मैं करती हूँ प्रेम बहुत,
चरणों की धूल से श्रृंगार पहर हर चार,तो फिर
क्यों रहती हूँ,चौखट पर दिन रात,बात यूँ
खुद से ही बतलाती थी!!

गर यह प्रेम दिवस है,तो बोलो वो क्या होगा,
जब तुम बरसों की तृष्णा करने शांत,आओगे
द्वार मेरे,और मैं हो जाउंगी तृप्त,कि बस न
एक जनम और लुंगी,इस दुनिया में आकर
फिर न दर्द बिछोह,झेल,दुर्दत दशा कर लुंगी
न फिर अपनी !!
यही दिवस होगा प्रेम का इक बार,अगर तुम
जलती सी चिंगारी मन में दो अपने अधरों से
टेक बुझा दोगे जिस दिन,मैं भी कह कह सबको
बतला दूंगी,ये है प्रेम दिवस तो आज *

2 comments:

  1. मिले जो जख्म अब तक उसे सब सीना है
    जिंदगी ज़िंदादिली से अब तो हरपल जीना है
    अमृत की बूँद फैलायेंगे सागर मंथन करके
    नीलकंठ बन सारा गरल समाज का पीना है

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