“मेरे पेट में होने
की खबर से,घर में मातम सा पसर जाता है....
जो जननी है जग की,खुद उसे ही जन्मने नही दिया जाता है.....
माँ के हंसी का अंदाज़,क्यों अचानक बदल जाता है???
मेरी पहचान करने का पाप,जब वक़्त से पहले किया जाता है.....
नन्ही सुनती सब है,कुछ सहमी सहमी सी भीतर....
न जाने क्यों सब रूठे हैं,मेरी आने की खबर सुनकर....
जब माँ ने पेट पर हाथ फेरा,तो क्या कहना चाहती थी??
मुझे प्यार से सहलाती थी,या सदा के लिए सुलाती थी??
पापा भी तो रोज़ कान में,मेरी धडकन सुनते थे...
फिर वो मेरे नही तो,आखिर किसके सपने बुनते थे.....
कल रात को माँ ने शायद,मीठी रोटी भी नही खायी थी!!!
तभी तो मेरे हिस्से की चीनी,मुह में नही आई थी....
अंदर हूँ,लाचार हूँ,कुछ कर तो नही सकती....
भूखे पेट सारी रात,सो भी तो नही सकती.....
क्यों गुस्सा हैं सब मुझसे इतना..
क्या मैं ज्यादा कुछ ले जाउंगी???
इतनी नफरत पाकर मैं....
माँ के अन्दर ही मर जाउंगी “
जो जननी है जग की,खुद उसे ही जन्मने नही दिया जाता है.....
माँ के हंसी का अंदाज़,क्यों अचानक बदल जाता है???
मेरी पहचान करने का पाप,जब वक़्त से पहले किया जाता है.....
नन्ही सुनती सब है,कुछ सहमी सहमी सी भीतर....
न जाने क्यों सब रूठे हैं,मेरी आने की खबर सुनकर....
जब माँ ने पेट पर हाथ फेरा,तो क्या कहना चाहती थी??
मुझे प्यार से सहलाती थी,या सदा के लिए सुलाती थी??
पापा भी तो रोज़ कान में,मेरी धडकन सुनते थे...
फिर वो मेरे नही तो,आखिर किसके सपने बुनते थे.....
कल रात को माँ ने शायद,मीठी रोटी भी नही खायी थी!!!
तभी तो मेरे हिस्से की चीनी,मुह में नही आई थी....
अंदर हूँ,लाचार हूँ,कुछ कर तो नही सकती....
भूखे पेट सारी रात,सो भी तो नही सकती.....
क्यों गुस्सा हैं सब मुझसे इतना..
क्या मैं ज्यादा कुछ ले जाउंगी???
इतनी नफरत पाकर मैं....
माँ के अन्दर ही मर जाउंगी “
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यहाँ बहुत अँधेरा है ! अब
मैं माँ के गर्भ में आ गयी हूँ ! शायद यहाँ मैं सबसे ज्यादा सुरक्षित हूँ ! जगह कम
है ,पर मैं यहाँ मालिक की तरह रह सकती हूँ ! माँ जो खाती है, मुझे भी खिलाती है !
कभी मीठा , कभी तीखा , कभी खट्टा , कभी नमकीन ! मेरे मुह में दिन में एक बार चीनी
ज़रूर आती है ! शायद माँ मेरे होने की खुशी में !
दिन में कई बार माँ मुझे
सहलाती है, हाथ फेरती है , कभी मैं चुपचाप सुकड कर एहसास लेती हूँ, कभी शरारत में
पैर मारती हूँ ! मुझे यहाँ सब सुनाई देता है ! आज माँ को डॉक्टर के पास जाना है !
शायद मुझे देखने ! पहली बार देखेगी माँ , पापा, दादी भी ! कितने खुश होंगे सब !
मैं लड़की हूँ ! दादी रोते
हुए बता रही है ! पर रोते हुए क्यों? घर में अजीब अजीब सी आवाजें आ रही हैं ! सब
बदला सा लग रहा है ! न माँ ने एक बार भी मुझे सहलाया, न हाथ फेरा ! आज मैं भूखी
हूँ, एक दम ! न माँ ने भीगी रोटी खायी, न चीनी !
बहुत भूख लगी है ! पर खुद
खा नही सकती ! अब बहुत दिन हुए, सिर्फ सूखे सूखे से रोटी के टुकड़े ही खा पाती हूँ
!
लड़की हुई है ! इसका नाम खुद
ही रख दो ! क्या पंडित को बुलाना , क्या सत्यनारायण की कथा करवाना ,वंश बढ़ता, लड़का
होता, खानदान का नाम होता ,पर कुंडली मारकर हमारी राशि में आ गयी ! यही कुछ हाल
होता है अधिकतर घरों में हमारे देश में लड़की के होने के बाद ! कही तो लड़की
राजकुमारी सी पलती हैं , कहीं अभिशाप सी ढोही जाती हैं !
ग्रेट लाइन्स ... आप जैसी क्रांतिकारी लेखिकाओं की इस समाज को सख्त ज़रूरत है.
ReplyDeleteमान गए आपकी लेखनी को .....वाह बहुत खूब
ReplyDeletenice l9s
ReplyDeleteदिल को छु लेने वाली अभिव्क्ति चंचल ......
ReplyDeleteहाँ ये तो रोज़ ही होता है कभी किसी रूप तो कभी किसी रूप में नारी को तो जीने ही नहीं दिया जाता
क्या नारी होना इस दुनिया में इक अभिशाप है ?
जब की वो हर रूप में हमारा ख्याल रखती है .... :(
Chanchal. I like the article because its different. In ur next next article I will be expecting practical solutions to stop this crime. All the best
ReplyDeletevery touchy and you successfully send the message across
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