Wednesday 5 June 2013

क्यूंकि इसकी हैसियत किलकारी मारने की भी नही है





मेरे पेट में होने की खबर से,घर में मातम सा पसर जाता है....
जो जननी है जग की,खुद उसे ही जन्मने नही दिया जाता है.....
माँ के हंसी का अंदाज़,क्यों अचानक बदल जाता है???
मेरी पहचान करने का पाप,जब वक़्त से पहले किया जाता है.....

नन्ही सुनती सब है,कुछ सहमी सहमी सी भीतर....
न जाने क्यों सब रूठे हैं,मेरी आने की खबर सुनकर....

जब माँ ने पेट पर हाथ फेरा,तो क्या कहना चाहती थी??
मुझे प्यार से सहलाती थी,या सदा के लिए सुलाती थी??
पापा भी तो रोज़ कान में,मेरी धडकन सुनते थे...
फिर वो मेरे नही तो,आखिर किसके सपने बुनते थे.....

कल रात को माँ ने शायद,मीठी रोटी भी नही खायी थी!!!
तभी तो मेरे हिस्से की चीनी,मुह में नही आई थी....
अंदर हूँ,लाचार हूँ,कुछ कर तो नही सकती....
भूखे पेट सारी रात,सो भी तो नही सकती.....

क्यों गुस्सा हैं सब मुझसे इतना..
क्या मैं ज्यादा कुछ ले जाउंगी???
इतनी नफरत पाकर मैं....
माँ के अन्दर ही मर जाउंगी
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यहाँ बहुत अँधेरा है ! अब मैं माँ के गर्भ में आ गयी हूँ ! शायद यहाँ मैं सबसे ज्यादा सुरक्षित हूँ ! जगह कम है ,पर मैं यहाँ मालिक की तरह रह सकती हूँ ! माँ जो खाती है, मुझे भी खिलाती है ! कभी मीठा , कभी तीखा , कभी खट्टा , कभी नमकीन ! मेरे मुह में दिन में एक बार चीनी ज़रूर आती है ! शायद माँ मेरे होने की खुशी में !

दिन में कई बार माँ मुझे सहलाती है, हाथ फेरती है , कभी मैं चुपचाप सुकड कर एहसास लेती हूँ, कभी शरारत में पैर मारती हूँ ! मुझे यहाँ सब सुनाई देता है ! आज माँ को डॉक्टर के पास जाना है ! शायद मुझे देखने ! पहली बार देखेगी माँ , पापा, दादी भी ! कितने खुश होंगे सब !

मैं लड़की हूँ ! दादी रोते हुए बता रही है ! पर रोते हुए क्यों? घर में अजीब अजीब सी आवाजें आ रही हैं ! सब बदला सा लग रहा है ! न माँ ने एक बार भी मुझे सहलाया, न हाथ फेरा ! आज मैं भूखी हूँ, एक दम ! न माँ ने भीगी रोटी खायी, न चीनी !
बहुत भूख लगी है ! पर खुद खा नही सकती ! अब बहुत दिन हुए, सिर्फ सूखे सूखे से रोटी के टुकड़े ही खा पाती हूँ !

लड़की हुई है ! इसका नाम खुद ही रख दो ! क्या पंडित को बुलाना , क्या सत्यनारायण की कथा करवाना ,वंश बढ़ता, लड़का होता, खानदान का नाम होता ,पर कुंडली मारकर हमारी राशि में आ गयी ! यही कुछ हाल होता है अधिकतर घरों में हमारे देश में लड़की के होने के बाद ! कही तो लड़की राजकुमारी सी पलती हैं , कहीं अभिशाप सी ढोही जाती हैं !

कहीं किसी छोटे या बड़े दवाखाने के भीतर कचरे के डिब्बे में आधे या साबुत भ्रूण के रूप में,कभी चौराहे पर रखे कूड़ेदान में जानवर की खायी या नोची हुई पोटली  सी, कभी ससुराल की रसोई में अधजली या फूंकी हुई जिंदा लाश,कभी घर की चारदीवारी में चाचा, मामा, बाप ,भाई के खेलने का खिलौना बनकर ,...कभी सड़क, बस, ट्रेन,दफ्तर में हवस की शिकार बन कर ,... हज़ारों दामिनी रोज़ जीने के लिए संघर्ष कर रही हैं ,..फर्क इतना है की कभी पूरा देश उनकी आवाज़ बन जाता है,तो कभी वो खुद भी अपने लिए आवाज़ नही उठाती ,.....समाज को बेहतर बनना है ,तो शुरुआत भ्रूण की रक्षा से करनी होगी ,........क्यूंकि इसकी हैसियत किलकारी मारने की भी नही है

6 comments:

  1. ग्रेट लाइन्स ... आप जैसी क्रांतिकारी लेखिकाओं की इस समाज को सख्त ज़रूरत है.

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  2. मान गए आपकी लेखनी को .....वाह बहुत खूब

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  3. दिल को छु लेने वाली अभिव्क्ति चंचल ......
    हाँ ये तो रोज़ ही होता है कभी किसी रूप तो कभी किसी रूप में नारी को तो जीने ही नहीं दिया जाता
    क्या नारी होना इस दुनिया में इक अभिशाप है ?
    जब की वो हर रूप में हमारा ख्याल रखती है .... :(

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  4. Chanchal. I like the article because its different. In ur next next article I will be expecting practical solutions to stop this crime. All the best

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  5. very touchy and you successfully send the message across

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